सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति बनाने में आखिर क्यों लेनी पड़ी चीन की मदद ?
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दोस्तों, आपको बता दें कि साल 2010 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, उस वक्त अहमदाबाद में निकाय चुनाव होने वाले थे। उन दिनों नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल की मूर्ति बनवाने का वादा किया था। हांलाकि तब इस मूर्ति को स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी का नाम नहीं दिया गया था।
सरदार पटेल की इस विशालकाय मूर्ति को बनाने के लिए देशभर के करीब 15 करोड़ किसानों से लोहा और मिट्टी मांगी गई। लिहाजा इस मूर्ति को देश की एकता के पर्याय के रूप में देखा गया और नाम रखा स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी। स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति है। इस मूर्ति को बनाने में कुल 2900 करोड़ रूपए खर्च हुए हैं।
अब सवाल यह उठता है कि भारत ने इस मूर्ति को बनाने में आखिर चीन से मदद क्यों ली। हांलाकि सरदार पटेल के मूर्तिकार का नाम पद्मभूषण सम्मान प्राप्त राम वी सुतार है। इस मूर्ति की ढलाई काम चीन की जियांग्जी टोकिन कंपनी को दिया गया था। दरअसल इस भव्य मूूर्ति को बनाने में 70 हज़ार मीट्रिक टन सीमेंट लगा है। इतने सीमेंट में 2 बीएचके के 3500 घर बनवाए जा सकते हैं।
इसके अलावा इस मूर्ति में 6 हज़ार 500 मीट्रिक टन स्ट्रक्चरल स्टील, 18 हज़ार मीट्रिक टन रीइंफ़ोर्समेंट स्टील, 2 लाख 12 हज़ार क्यूबिक मीटर कंक्रीट एवं 22 हज़ार स्क्वायर मीटर कांसे की प्लेटें लगी हैं। इन सभी का वजन सरदार पटेल की मूर्ति के पैरों पर ही आ रहा था।
ऐसे में भारत के सभी बड़े ढलाईघरों ने हाथ खड़े कर दिए। तब विवश होकर भारत को चीन से मदद लेनी पड़ी। इस प्रकार स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी की ढलाई का जिम्मा चीन की जियांग्जी टोकिन कंपनी ने उठाया। स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी में चीन से 7 हज़ार कांसे की प्लेटें मंगवाई गई।