सुभाष चंद्र बोस आजादी की लड़ाई का एक ऐसा नाम है, जिसे अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के मुकाबले में ज्यादा तवज्जो दी जाती है और दी जाती रहेगी। स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित सुभाष चंद्र बोस ने मैट्रिक करने के बाद कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। लेकिन वहां भारत विरोधी बयान देने वाले प्रोफेसर ओटेन से सुभाष बाबू का संघर्ष इस कदर बढ़ गया कि उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्कॉटिश चर्च कॉलेज में ले लिया।

पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए सुभाष चंद्र बोस आईसीएस ​अधिकारी बनने के लिए लंदन पहुंच गए। आईसीएस परीक्षा में चौथा स्थान हासिल कर सुभाष चंद्र बोस ने एकबारगी सबको चौंका दिया था। 1921 में उन्होंने देश सेवा से प्रेरित होकर आईसीएस से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद चितरंजन दास के निर्देशन में स्वराज और फॉरवर्ड अखबार का संपादन करने लगे। सुभाष चंद्र बोस को 1923 में कांग्रेस युवा मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। साथ ही बंगाल कांग्रेस के महासचिव बनाए गए। सुभाष बाबू कलकत्ता महापालिका के मुख्य कार्यकारी अधिकारी भी रहे।

1930 में वह कलकत्ता के मेयर भी बने। लेकिन सविनय अवज्ञा आंदोलन में उन्हें अरेस्ट कर लिया गया। फ्रैक्चर होने से उनकी तबीयत खराब हो गई, इसलिए उनको ऑस्ट्रिया भेज दिया। अभी आप यही सोच रहे होंगे कि आजादी के इस दीवाने ने ऐसा क्या कर दिया था कि सरदार वल्लभ भाई पटेल केस दायर कर दिया। जी हां, इस बात की कहानी से ऑस्ट्रिया में शुरू होती है। दरअसल ऑस्ट्रिया में ही सुभाष चंद्र बोस की मुलाकात सरदार पटेल के बड़े भाई विट्ठल भाई पटेल से हुई।

विट्ठल भाई पटेल उन दिनों वहां बेहद बीमार थे। सुभाष चंद्र बोस ने विट्ठल भाई पटेल की खूब सेवा की। विट्ठल भाई पटेल सुभाष बाबू से इतने प्रभावित हुए कि वह अपनी जायदाद का एक हिस्सा ​देशहित का कामकाज चलाने के लिए सुभाष बाबू के नाम लिख गए। इस मामले को लेकर सुभाष चंद्र बोस और सरदार वल्लभ भाई पटेल में विवाद हो गया। इसके बाद सरदार पटेल ने नेताजी पर केस दायर कर दिया। हांलाकि सुभाष चंद्र बोस मुकदमा हार गए, लेकिन पटेल और सुभाष के बीच मतभेद जारी रहे, लेकिन कभी मनभेद नहीं हुए।

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