प्रणब मुखर्जी ने क्यों छोड़ दी थी कांग्रेस पार्टी ?
भारत रत्न प्रणब मुखर्जी की ऑटोबायोग्राफी द कोलीशन ईयर्स (1996-2012) के रिलीज फंक्शन में मनमोहन सिंह ने जो मजेदार बातें कही थी, उसे आप भी जान लीजिए। मनमोहन सिंह ने कहा था कि प्रणव मुखर्जी का पीएम नहीं बन पाने का गुस्सा स्वाभाविक था। वह मुझसे ज्यादा काबिल थे। बता दें कि 70 के दशक में प्रणब दा इंदिरा सरकार में राज्यमंत्री थे, जबकि मनमोहन सिंह वित्त मंत्रालय में एडवाइजर थे। 80 के दशक में प्रणब मुखर्जी इंदिरा सरकार में वित्त मंत्री थे, जबकि मनमोहन सिंह आरबीआई के गवर्नर।
इसके बाद जब नरसिम्हा राव की सरकार बनी तब प्रणब मुखर्जी योजना आयोग के अध्यक्ष थे और मनमोहन सिंह वित्त मंत्री। आखिर में मनमोहन सिंह 10 साल तक प्रधानमंत्री रहे और उसमें 8 साल तक प्रणब मुखर्जी कभी विदेश, तो कभी वित्त, तो कभी रक्षा मंत्री बनाए गए।
खुद प्रणब मुखर्जी के शब्दों में- अगर कुछ सालों का अपवाद छोड़ दिया जाए तो मैं ऐसा इकलौता आदमी हूं जो कांग्रेस की वर्किंग कमेटी में 1978 से लेकर 2012 तक शामिल रहा। आज हम प्रणब मुखर्जी के उसी अपवाद की बात करने जा रहे हैं। जी हां, कांग्रेस पार्टी में इंदिरा के बाद नंबर टू की हैसियत रखने वाले प्रणब मुखर्जी को राजीव गांधी ने साइडलाइन कर दिया था। राजीव की सरकार में प्रणब मुखर्जी को कैबिनेट तक में जगह नहीं मिली थी। पार्टी में रहने के बाद भी प्रणब दा को नोटिस पर नोटिस दिए गए।
आखिरकार प्रणब दा ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और अपनी पार्टी बनाई। पश्चिम बंगाल में चुनाव हारने के बाद प्रणब मुखर्जी को वापस पार्टी में लाने के लिए उनके पुराने दोस्तों ने काफी मदद की। 1998 के पंचमढ़ी अधिवेशन से प्रणब मुखर्जी ने गांधी खेमे में वापसी की। उन दिनों सोनिया गांधी पार्टी अध्यक्ष थीं। दरअसल सोनिया गांधी पुराने वफादारों माखनलाल फोतेदार, नटवर सिंह और आरके धवन के जरिए पार्टी का काम संभाल रही थीं।
इसके बाद सोनिया ने प्रणब मुखर्जी का कौशल देखा और फिर से उन्हें पार्टी में नई जिम्मेदारियां मिलने लगी। कुल मिलाकर प्रणब मुखर्जी भले ही देश के राष्ट्रपति बने, उन्हें भारत रत्न का सम्मान मिला लेकिन सोनिया गांधी ने भी अपने पति राजीव गांधी की तरह प्रणब दा को कभी पीएम बनने का चांस नहीं दिया।