बहुजन समाज पार्टी के कार्यकर्ता अक्सर यह नारा लगाते रहते हैं। चढ़ दुश्मन की छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर। कभी नारा लगाते हैं- हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा, विष्णु महेश है। खैर इन चर्चित नारों की बात छोड़िए, सवाल यह उठता है कि बसपा का सिंबल हाथी ही क्यों है। बसपा के संस्थापक कांशीराम ने चुनाव आयोग से अपनी पार्टी का चुनाव चिन्ह आखिर हाथी ही क्यों मांगा था। इसके पीछे कई कारण हैं।

- कांशीराम दलित जाति के लोगों को बहुजन कहा करते थे। वह कहते थे कि दलित कहने से इनकी मानसिक मजबूती कैसे बढ़ेगी। कांशीराम का मानना था कि बहुजन समाज एक हाथी की तरह विशालकाय है। हड्डीतोड़ मेहनत करने वाला और बेहद मजबूत बस इसको अपनी ताकत का पता नहीं है। ऊपरी जातियों के लोग बेहद कमजोर होने के बावजूद भी महावत की तरह इन्हें कंट्रोल करते हैं।
- हाथी का बौद्ध धर्म से भी रिश्ता है और बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का भी। मरने से पहले बाबा साहेब ने बौद्ध धर्म अपना लिया था।

- कांशीराम ने जब बसपा की स्थापना की तो स्वयं को अंबेडकर की राजनीति का वास्तविक उत्तराधिकारी माना। बतौर सिंबल यह हाथी उसी सम्मान का प्रतीक था।
- हिमाचल प्रदेश, पंजाब, बिहार जैसे अनेक राज्यों में बहुजन हाथी को देवताओं की सवारी मानते हैं। ऐसे में अपनी चीजों को बड़े स्तर पर देखने से दलितों में आत्मविश्वास का आना लाजिमी था।

गौरतलब है कि जिन दिनों कांशीराम ने बसपा की स्थापना की और बहुजन समाज को अपनी पार्टी से जोड़ना शुरू किया, उन दिनों समाज में पढ़े-लिखे लोगों की संख्या बहुत कम थी। ऐसे में उन्हें ऐसे सिंबल की जरूरत थी, जिसे लोग आसानी से समझ सकें। उस वक्त बहुजन समाज के ज्यादातर वोट कांग्रेस को ही जाते थे। उन्हें पता ही नहीं था कि किसे वोट करना है। इसलिए यह हाथी बड़े काम का सिद्ध हुआ।

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