साइमन कमीशन का विरोध कर रहे स्वतंत्रता सेनानियों पर पुलिस सुपरिंटेंड़ेंट जेम्स स्कॉट ने लाठी चार्ज करवाया था। इस दौरान लाला लाजपत राय अंग्रेजों की लाठियों से बुरी तरह घायल हुए थे। 17 नवम्बर, 1928 को लाला लाजपत राय का निधन हो गया। लेकिन शरीर पर लाठियां पड़ते समय लाला लाजपत राय ने कहा था कि मेरे शरीर पर पड़ रही एक-एक लाठी अंग्रेज़ी हुकूमत के ताबूत की कील बनेगी।

ऐसे में चंद्रशेखर आज़ाद, सुखदेव थापर, भगत सिंह और राजगुरु ने अग्रेंज अधिकारी जेम्स स्कॉट को शिकार बनाने की योजना तैयार की। भगत सिंह से शिकार को पहचानने में चूक हो गई, ऐसे में जेम्स स्कॉट की जगह जे.पी.सॉन्डर्स नाम का एक अंग्रेज अफसर मारा गया। इतिहास गवाह है बाद में भगत, राजगुरु और सुखदेव पकड़े गए और इन्हें फांसी दी गई।

लेकिन सवाल यह उठता है कि चंद्रेशखर आजाद ने जेम्स स्कॉट को मारने के लिए भगत सिंह और सुखेदव की जगह राजगुरू को ही क्यों चुना था?.

जी हां, दोस्तों इसके लिए हमें राजगुरू की पिछली कहानी पढ़नी होगी। 24 अगस्त, 1908 को पुणे शहर से महज़ 40 किलोमीटर दूर भीमा नदी के किनारे बसे खेड़ में एक बालक ने जन्म लिया। घरवालों ने नाम रखा था शिवराम। एक बार इस इलाके में एक साधु ने बालक शिवराम की मां से कहा कि तुम्हारा बेटा काशी के भगवान विश्वनाथ का वंशज है। ऐसे अवतार पापियों का नाश करने के लिए होते हैं। फिर क्या था मां ने कभी अपने बेटे को नाम से नहीं पुकारा। उन्होंने राजगुरू को बापूसाहेब कहना शुरू कर दिया।

बढ़ती उम्र के साथ राजगुरू के आदर्श बदलते रहे। यह बालक पहले बाल गंगाधर तिलक, चाफेकर बंधू और फिर महर्षि रानडे को अपना आदर्श मानने लगा। लेकिन राजगुरू की यह बात उनके बड़े भाई को पंसद नहीं थे, वह चाहते थे कि पढ़-लिखकर राजगुरू अंग्रेजी राज में नौकरी करे।

राष्ट्रवाद को लेकर टकराव होना ही था, इसलिए दोनों भाईयों में एक दिन जमकर झगड़ा हुआ। फिर क्या था राजगुरू को भारत माता की सेवा के लिए कोई बहाना चाहिए था, इसलिए निकल पड़े घर से। झांसी, लखनऊ, कानपुर, प्रयाग होते हुए आखिरकार काशी पहुंचे जहां उनकी मुलाकात एक श्रीराम सावरगांवकर नाम के एक मराठी व्यक्ति से हुई। इस मराठी शख्स ने राजगुरू की मुलाकात चंद्रशेखर आजाद से करवाई।

मुलाकात के दौरान आज़ाद ने राजगुरू से केवल दो सवाल पूछे थे जो इस प्रकार हैं।

चंद्रशेखर आजाद- तो तुम क्रांतिकारी बनना चाहते हो?

राजगुरु- हां, लंबे समय से मेरी कोशिशें जारी हैं।

चंद्रशेखर आजाद- यह सब कुछ जानने के बाद भी कि इसका अंजाम या तो गोलियों बिंधी लाश होगी या फिर फांसी का तख्ता?

राजगुरु ने निडर होकर कहा था- इन छोटी-मोटी बातों की मैं परवाह नहीं करता।

चंद्रेशखर आजाद को 16 साल का यह लड़का पंसद आ गया था। साथ लेकर चले गए ओरछा के जंगलों में और शूटिंग की ट्रेनिंग दी। ट्रेनिंग के दौरान राजगुरू की निशानेबाजी देखकर चंद्रशेखर बहुत खुश हुए। यही असली वजह थी कि सॉन्डर्स की हत्या के समय चंद्रेशखर आजाद ने किसी अन्य क्रांतिकारी नहीं बल्कि राजगुरू को ही चुना था।

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