राजस्थान में हर बार तीसरे मोर्चे की क्यों निकल जाती हैं हवा
पॉलिटिकल डेस्क। राजस्थान में लंबे समय से तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद जारी है। लेकिन प्रत्येक बार के चुनावो में तीसरे मोर्चे का तिलिस्म टूट जाता है। साल 2008 में तीसरे मोर्चे के नाम पर बसपा ने 6 सीटों पर जीत हासिल की। वही भाकपा ने 3 जदयू ने 1 लोकतान्त्रिक समाजवादी पार्टी ने 1 सीट पर जीत दर्ज की। इस साल के चुनावों में ही 96 सीटें जीतने वाली कांग्रेस पार्टी ने निर्दलीयों के समर्थन से राज्य में सरकार बनाई।
साल 2013 में एक बार फिर राज्य में विधानसभा चुनाव हुए। बीजेपी से बगावत कर किरोड़ी लाल मीणा ने अपनी पार्टी 'राजपा' का गठन किया और तीसरे मोर्चे की अगुवाई की। उनकी पार्टी ने राज्य की करीब 150 से ज्यादा सीटों पर उमीदवार उतारे। लेकिन राजपा महज 4 सीटों पर ही जीत हासिल करने में कामयाब रही। राजपा के अलावा बसपा ने 3 सीट पर जीत दर्ज की। इस साल भारतीय जनता पार्टी ने बहुमत हासिल किया और और सरकार बनाई।
साल 2018 में हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में एक बार फिर तीसरे मोर्चे की हवा निकल गई हैं। इस बार के चुनावों में तीसरे मोर्चे की अगुवाई बीजेपी के बागी हनुमान बेनीवाल और घनश्याम तिवारी ने की। दोनों बागी नेताओं ने अपनी-अपनी राजनीतिक पार्टियां बनाई और चुनाव लड़ा और कई उम्मीदवारों को भी लड़ाया। परिणाम आने के बाद तिवारी की पार्टी भारत वाहिनी को 0 तो बेनीवाल की पार्टी आरएलपी को 3 सीट मिली हैं।
भारत वाहिनी और आरएलपी के अलावा बहुजन समाज पार्टी ने इन चुनावों में 6 सीटों पर जीत हासिल की। तीसरे मोर्चे की असफलता का मुख्य कारण मोर्चे की पहल करने वाले नेताओ का एक जाति और एक क्षेत्र तक सीमित रह जाना है।