विश्व विजेता योद्धाओं के इतिहास में तैमूरलंग का नाम जरूर लिया जाता है। जी हां, तैमूरलंग का नाम सुनते ही दुश्मन कांप उठता था। इस क्रूर योद्धा को दुश्मनों के सिर काटकर इकट्ठा करने का बहुत शौक था। 14वीं शताब्दी में योद्धा तैमूरलंग ने बम और बंदूकों के सहारे नहीं बल्कि तलवार के सहारे से जो जंगें जीती, वह किसी को भी अचरज में डालने के लिए काफी है।

1336 में तैमूरलंग का जन्म समरकंद के किसी राजपरिवार में नहीं बल्कि एक साधारण परिवार में हुआ था। आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि शुरू में तैमूरलंग एक मामूली चोर थे, और वह मध्य एशिया के मैदानों और पहाड़ियों से भेड़ें चुराया करते थे। तैमूरलंग के पास सैनिक नहीं ​थे, लेकिन उन्होंने झगड़ालू लोगों की मदद से एक शानदार सेना बना ली। यह एक सोचने वाली बात है।

1402 में तैमूरलंग जब पहली बार सुल्तान बायाजिद प्रथम के खिलाफ युद्ध के मैदान में उतरे उस वक्त उनके सामने समरकंद से सर्बिया तथा अर्मेनिया से लेकर अफगानिस्तान तक के सैनिक थे। लेकिन तैमूरलंग अपने साहस और योग्यता के बल पर एशिया के सिंहासन पर काबिज हुआ। तैमूरलंग को उनकी विकलांगता ने कभी प्रभावित नहीं किया। यह सच्चाई है कि तैमूरलंग का दाहिना हिस्सा ठीक ढंग से काम नहीं करता था।

पैदा होने पर माता-पिता ने इनका नाम तैमूर रखा है। तैमूर का मतलब लोहा होता है। लंगड़ा होने के चलते फारसी में लोग मजाक-मजाक में इस योद्धा को तैमूरलंग यानि लंगड़ा तैमूर कहने लगे। युवावस्था में तैमूर भाड़े के मजदूर के तौर पर खुर्शान में पड़ने वाले खानों में काम कर रहे थे, उस वक्त उनका दाहिना हिस्सा बुरी तरह से घायल हो गया था, इसके बाद इनका नाम बिगड़कर तैमूरलंग पड़ गया।

जिस जमाने में राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने के लिए शारीरिक मजबूती जरूरी थी, उस वक्त तैमूरलंग के सामने उनकी शारीरिक विकलांगता कभी आड़े नहीं आई। इतिहासकारों के मुताबिक, तैमूर केवल एक हाथ से तलवार पकड़ सकते थे। ऐसे में इस योद्धा ने घुड़सवारी और तलवारबाजी के लायक खुद को कैसे तैयार किया होगा।

जब कि 15वीं शताब्दी के सीरियाई इतिहासकार इब्ने अरब शाह ने लिखा है कि भेड़ चुराते समय एक चरवाहे ने अपनी तीर से तैमूर को घायल कर दिया था। भेड़ चराने वाले की एक तीर तैमूर के कंधे पर, दूसरी तीर उनके कूल्हे पर लगी थी। इब्ने अरब शाह के अनुसार, तैमूर की विकलांगता ने उनकी गरीबी, रोष और दुष्टता में इजाफा किया।

वहीं स्पेनिश राजदूत क्लेविजो के अनुसार, सिस्तान के घुड़सवारों का सामना करते हुए तैमूरलंग बुरी तरह से घायल हुए थे। क्लेविजो ने लिखा है कि दुश्मनों ने तैमूर को घोड़े से गिराकर उनके दाहिने पैर को बुरी तरह से जख्मी कर दिया था, जिससे वह आजीवन लंगड़ाकर चलते रहे। बाद में उनका दाहिना हाथ भी जख्मी हो गया। तैमूर ने अपने दाहिने हाथ की दो उंगलियां भी गवां दी थी। 1941 में समरकंद स्थित तैमूरलंग के खूबसूरत मक़बरे की खुदाई में सोवियत पुरातत्वविदों को पता चला कि लंगड़े होने के बावजूद 5 फुट 7 इंच के तैमूर का शरीर पूरी तरह से कसा हुआ था।

तैमूर लंग अपने दाहिने पैर को घसीटकर चलता था। इसके अलावा उनका बाया कंधा दाएं कंधे के मुकाबले कुछ ज्यादा ऊंचा था। बगदाद, सीरिया तथा तुर्की के दुश्मन शासक तैमूर का मजाक उड़ाते थे, लेकिन तैमूरलंग का सामना करना कोई हंसी खेल नहीं था। इतिहासकार एडवर्ड गिब्बन ने तैमूरलंग की सैन्य काबलियत की खूब प्रशंसा की है।

1405 में चीन के राजा मिंग के ख़िलाफ युद्ध में तैमूरलंग की मौत हुई थी। इससे पहले वह लगातार 35 सालों तक युद्ध जीतते आ रहे थे। एक विकलांग योद्धा के विश्वविजेता बनने का दूसरा ऐसा बेहतरीन उदाहरण इतिहास में कहीं नहीं मिलता है।

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