जानकारी के लिए बता दें कि राजीव गांधी की हत्या के ठीक एक महीने बाद इंदिरा गांधी के खास रहे बुजुर्ग ब्यूरोक्रेट पीएन हकसर ने प्रधानमंत्री पद के लिए सोनिया गांधी को शंकर दयाल शर्मा का नाम सुझाया। कांग्रेस परिवार की वर्षों से खास रहीं अरुणा आसफ अली जब सोनिया गांधी का संदेश लेकर शंकर दयाल शर्मा के पहुंची तब उन्होंने जो जवाब दिया वह इस प्रकार है- मैं इस प्रस्ताव से बहुत सम्मानित महसूस कर रहा हूं। मगर मेरी उम्र अब बहुत ज्यादा हो गई है, मेरी सेहत भी ठीक नहीं रहती कि इतनी बड़ी जिम्मेदारी निभा पाऊं। इसलिए इस पद के साथ मैं न्याय नहीं कर पाऊंगा। फिर क्या था हकसर ने राव का नाम सुझाया और 21 जून 1991 को नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बन गए। लेकिन ठीक एक साल बाद शंकर दयाल शर्मा 25 जुलाई 1992 को देश के नौवें राष्ट्रपति बने।

जानकारी के लिए बता दें कि इंदिरा गांधी के कार्यकाल में भी शंकर दयाल शर्मा 1972 से 1974 तक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। लेकिन राजीव गांधी के दौर में उनके दिन गवर्नर हाउस में कटने लगे। जब राजीव गांधी की हत्या हुई थी, उस वक्त वह आंध्र प्रदेश के गवर्नर थे।

यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि 31 जुलाई 1985 को शंकर दयाल शर्मा की बेटी गीतांजलि तथा उनके दामाद युवा कांग्रेस नेता ललित माकन को आतंकवादियों ने वेस्ट दिल्ली के कीर्ति नगर वाले घर के बाहर गोलियों से छलनी कर दिया था। दरअसल युवा कांग्रेस के तेज तर्रार नेता ललित माकन पर सिख दंगों के दौरान भीड़ को भड़काने का आरोप लगा था। जिन आतंकियों ने शंकर दयाल शर्मा की बेटी और दामाद को मार दिया था, उनके नाम थे हरजिंदर सिंह जिंदा, सुखदेव सिंह सुक्खा और रंजीत सिंह गिल उर्फ कुक्की।

आतंकी हरजिंदर सिंह जिंदा और सुखदेव सिंह सुक्खा ने आर्मी जनरल अरुण वैद्य की भी हत्या की थी। दरअसल जनरल अरुण वैद्य ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान सेना के मुखिया थे। इन्हीं आतंकियों ने लुधियाना में 80 के दशक में पंजाब नेशनल बैंक से 5.70 करोड़ की लूट की थी। इन रुपयों को बोरे में भरकर ट्रक में लाद ले गए थे।

आपको बता दें कि जिस वक्त हरजिंदर सिंह जिंदा और सुखदेव सिंह सुक्खा को जनरल वैद्य की हत्या के जुर्म में फांसी की सजा दी गई, उस वक्त इनकी अपील देश के राष्ट्रपति के पहुंची थी। राष्ट्रपति थे शंकर दयाल शर्मा। दरअसल इन्हीं हत्यारों ने उनके बेटी-दामाद को गोलियों से छलनी किया था। लिहाजा भारतीय सेना के जनरल के हत्यारों को माफी मिलना वैसे भी नामुमकिन था।

इस प्रकार 9 अक्टूबर 1992 को हरजिंदर सिंह जिंदा और सुखदेव सिंह सुक्खा को पुणे की यरवदा जेल में फांसी दे दी गई। तीसरे आतंकवादी रंजीत सिंह गिल को साल 1987 में इंटरपोल ने अमेरिका में गिरफ्तार कर लिया। उसे आजीवन कारावास की सजा मिली। साल 2009 में जब वो रिहा हुआ तब माकन परिवार ने इसका विरोध नहीं किया।

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