महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर बैन लगा दिया गया था। इसके बाद 11 जुलाई 1949 को आरएसएस पर लगा यह प्रतिबंध हटा दिया गया, इसके साथ ही जेल में बंद करीब 20,000 कारकूनों को रिहा कर दिया गया। यह संगठन एक बार फिर से जमीनी स्तर पर तेजी से अपना आकार बढ़ाने लगा। उस वक्त सरसंघचालक गोलवलकर की अगुवाई में संघ ने महाराष्ट्र से बाहर दूसरे राज्यों में भी जड़े जमानी शुरू कर दी थी।

संघ के तमाम कार्यकर्ताओं को संघ का प्रचारक बनाकर दूसरे राज्यों में भेजा जाने लगा था। ऐसे में पूना विश्वविद्यालय से वकालत की डिग्री ​लेने वाले संघ प्रचारक लक्ष्मण राव ईनामदार को गुजरात भेजा गया। बात 1958 की है जब दीपावली के दिन प्रांत प्रचारक लक्ष्मण राव ईनामदार मेहसाणा के वडनगर कस्बे में आए हुए थे। उन्हें वडनगर के बाल स्वयंसेवकों को शपथ दिलानी थी।

बाल स्वयंसेवकों की उस लाइन में एक आठ साल का लड़का भी मौजूद था, जिसका नाम था नरेंद्र दामोदर दास मोदी। उन दिनों नरेंद्र मोदी के पिता दामोदर दास वडनगर रेलवे स्टेशन पर चाय की दुकान चलाते थे। नरेंद्र मोदी उन दिनों भागवताचार्य, नारायनाचार्य स्कूल जाने से पहले चाय बेचने में पिता की मदद किया करते थे।

बता दें कि 14 साल की उम्र में ही मां हीराबेन ने जसोदा के साथ नरेंद्र की शादी करवा दी थी। लेकिन जब गौने की बात आई तो वह अचानक गायब हो गए। अब मोदी वडनगर से अहमदाबाद आकर बस स्टैंड के पास मौजूद चाचा की कैंटीन में काम करना शुरू कर दिया था। कुछ दिनों बाद नरेंद्र ने एक साइकिल खरीदी और खुद की चाय की दुकान शुरू की। उन्होंने अपना पहला ठेला गीता मंदिर के पास लगाया।

सुबह की शाखा के वक्त संघ प्रचारक इसी रास्ते से आते-जाते थे। शाखा से वापस लौटते स्वयंसेवक मोदी की दुकान पर बैठकबाजी होने लगी। अब धीरे-धीरे नरेंद्र मोदी संघ के राज्यस्तरीय नेतृत्व के नजदीक आने लगे। इस दौरान उन्हें लक्ष्मण राव ईनामदार ने संघ कार्यालय में आकर रहने का न्यौता दिया।

नरेंद्र मोदी की जुबांनी इस स्टोरी को पत्रकार एमवी कामत ने अपनी किताब नरेंद्र मोदी: द आर्किटेक्ट ऑफ़ मार्डन स्टेट में सिलसिलेवार ढंग से प्रस्तुत किया है। 2009 में प्रकाशित इस पुस्तक में कुछ इस तरह लिखा गया है- उन दिनों गुजरात के हेडगेवार भवन में कुल 10-12 लोग रहते थे। वकील साहब यानि लक्ष्मण राव ईनामदार ने मुझे वहां आकर रहने का न्यौता दिया। सुबह उठने के बाद मैं संघ प्रचारकों के लिए चाय और नाश्ता बनाता, फिर पूरे कार्यालय का झाड़ू पोछा लगाता। इसके बाद मैं मेरे और ईनामदार साहब के कपड़े धोता था। इसके बाद पूरा दिन दूसरे कामों लगा रहता।

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