भारतीय सेना के पैरा कमांडो की असली पहचान है उनकी मैरून बैरेट। दुश्मन इन्हें लाल दैत्य कहते हैं। इंडियन आर्मी के पैरा कमांडो मौत से लड़कर अपनी ट्रेनिंग पूरी करते हैं। असंभव को संभव बनाना इनकी आदत में शुमार है। इस स्टोरी में हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर कैसे तैयार किए जाते हैं कि पैरा कमांडो के ये जाबांज।

- इंडियन आर्मी की विभिन्न रेजिमेंट्स में से इनको चुना जाता है। तकरीबन दस हजार सैनिकों में से एक को पैरा कमांडो फोर्स के लिए एच्छिक आवेदन के आधार पर चुना जाता है।

- पैरा कमांडो को 90 दिन की कड़ी ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है। इस ट्रेनिंग के लिए औसतन आयु 22 वर्ष होनी आवश्यक है। ट्रेनिंग के लिए इस आयु सीमा तक चुनने का मकसद केवल इनकी मानसिक क्षमता और इच्छाशक्ति को जांचना और परखना होता है।

- पैरा कमांडो के जाबांजों को पीठ पर 30 किलो वजन लेकर करीब 40 किमी तक दौड़ने की ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रेनिंग के दूसरे चरण में इन्हें 36 घंटे की खास ट्रेनिंग दी जाती है। इस दौरान ना तो वे सो सकते हैं और न ही कुछ खा पी सकते हैं।

- 36 घंटे की ट्रेनिंग का एक खतरनाक हिस्सा पैरा कमांडो को कीचड़ में डूबोना भी है। जब जवान थककर चूर हो जाते हैं, तब इन्हें कीचड वाले गहरे गड्ढे डूबो दिया जाता है। जो भी इस परीक्षा में पास नहीं होता उसे बाहर कर दिया जाता है।

- पैरा कमांडो को एक विशेष ट्रेनिंग के तहत 100 किमी की रन 16 से 17 घंटे के बीच पूरी करनी होती है। इस ट्रेनिंग का मकसद उनकी दृढ इच्छा शक्ति तथा सहन शक्ति की परीक्षा लेना है।

- पैरा कमांडो ट्रेनिंग के दौरान केवल 25 फीसदी जवान ही मैरून टोपी पाने के हकदार बन पाते हैं।

- पैरा स्पेशल फोर्स का हिस्सा बनने वाले हर उस जवान के लिए गर्व का क्षण होता है, जब उसे मैरून बैरेट पहनाई जाती है।

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