पाकिस्तान और भारत के बीच हुए 1971 के युद्ध में बांग्लादेश जीत के कई दावेदार थे। उन्हीं में से एक नाम है जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा। थल सेनाध्यक्ष सैम मानिक शॉ ने भी एक इंटरव्यू में कहा था कि 1971 में भले ही मेरी वाहवाही हुई, लेकिन असली काम तो जग्गी यानि जगजीत सिंह अरोड़ा ने ही किया था।

पूर्व चुनाव आयुक्त मनोहर सिंह गिल के मुताबिक, जनरल अरोड़ा को सरकार से बहुत कुछ मिलना चाहिए था, लेकिन उन्हें सिर्फ़ एक पद्म भूषण से ही संतोष करना पड़ा। यह घटना उन दिनों की है, जब 1971 का युद्ध अभी विधिवत शुरू नहीं हुआ था। 23 नवंबर को भारतीय सेना ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में एक ऑपरेशन किया था, इस दौरान जनरल अरोड़ा जब युद्ध का जायजा लेने युद्ध क्षेत्र में गए थे तभी पाकिस्तान के सैबर जेट्स ने उन पर हमला कर दिया।

रिटायर्ड जनरल मोहिंदर सिंह के मुताबिक, पाकिस्तानी सेबर जेट्स ने हमारे हेलिकॉप्टर पर हमला किया तो उसको लगी नहीं, इसलिए हम बंकर के अंदर चले गए। वहीं जनरल अरोड़ा ने मेरे सामने थल सेनाध्यक्ष जनरल मानेक शा को फ़ोन मिला कर उस आपरेशन के लिए वायु सेना के इस्तेमाल की अनुमति मांगी।

मानेक शा ने कहा, जग्गी अभी हम पाकिस्तान के साथ युद्ध के लिए तैयार नहीं हैं। इस पर जनरल अरोड़ा ने कहा कि यह बात आप दिल्ली में राजनीतिज्ञों से सुन सकते हैं, लेकिन ये मैं अपने सैनिकों को नहीं बता सकता। फिर क्या था एक घंटे बाद ही जैसे ही अनुमति मिली, भारत ने अपने नैट विमान भेजे और उन्होंने पाकिस्तान के तीन सैबर जेट्स को नष्ट कर दिया।

1971 के युद्ध में जनरल अरोड़ा 18 से 20 घंटे तक काम करते थे। वह रोज युद्ध के किसी ना किसी मोर्चे पर जाया करते थे। एडमिरल कृष्णन ने अपनी आत्मकथा ए सेलर्स स्टोरी में लिखा है कि 1971 युद्ध में जब पाकिस्तान की सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया तब ढाका के रेसकोर्स मैदान में एक छोटी सी मेज़ और दो कुर्सियाँ रखी गई थीं जिन पर जनरल अरोड़ा और पाकिस्तानी सेना के जनरल नियाज़ी बैठे थे। आत्मसमर्पण के दस्तावेज़ की छह प्रतियां थीं जिन्हें मोटे सफ़ेद कागज़ पर टाइप किया गया था।

कृष्णन ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि पहले पाकिस्तान सेना के जनरल नियाज़ी ने दस्तख़त किए और फिर जनरल अरोड़ा। पता नहीं क्यों जनरल नियाजी ने हस्तारक्षर के वक्त केवल एएके निया लिखा था। तब जनरल अरोड़ा ने उनसे कहा कि वह पूरे दस्तख़त करें। इसके बाद नियाजी के हस्ताक्षर करते ही बांग्लादेश आज़ाद हो गया।

एडमिरल कृष्णन की आत्मकथा ए सेलर्स स्टोरी में यह वर्णित है कि पाकिस्तान के जनरल नियाजी के आंखों में आंसू भर आए। उन्होंने अपने बिल्ले उतारे... रिवॉल्वर से गोली निकाली और उसे जनरल अरोड़ा को थमा दिया। जनरल अरोड़ा के सामने नियाजी ने अपना सिर झुकाया तथा अपने माथे को जनरल अरोड़ा के माथे से छुआ मानो वह उनकी अधीनता स्वीकार कर रहे हों। साल 1973 में जनरल अरोड़ा भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हो गए।

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