Nirbhaya Case: पर्चियों में लिखकर मां को अपनी पीड़ा सुनाई निर्भया, दरिंदे ने मेरे शरीर के एक-एक अंग को,,
निर्भया गैंगरेप और हत्या के चारों दोषियों पवन, अक्षय, विनय और मुकेश को शुक्रवार की सुबह 5.30 बजे तिहाड़ जेल में फांसी के फंदे पर लटकाया गया। तिहाड़ जेल में मेडिकल ऑफिसर ने चारों दोषियों को मृत घोषित कर दिया और उनके शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। 16 दिसंबर 2012 को हुई दरिंदगी से देश की बेटी असहनीय पीड़ा से गुजर रही थी। लेकिन वह अपना हौंसला बनाए हुई थी। छोटी-छोटी पर्चियों पर वह अपनी बात लिखकर डॉक्टरों और अपनी मां को दे रही थी। इन्हीं पर्चियों में देश की इस बहादुरी बेटी निर्भया ने वह तकलीफ व दर्द बयां किया। जानिए निर्भया ने पर्चियों में क्या क्या लिखा।
19 दिसंबर 2012
मां मुझे बहुत दर्द हो रहा है। मुझे याद आ रहा है कि आपने और पापा ने बचपन में पूछा था कि मैं क्या बनना चाहती हूं। तब मैंने आपसे कहा था कि मैं फिजियोथेरेपिस्ट बनना चाहती हूं। मेरे मन में एक ही बात थी कि मैं किस तरह लोगों का दर्द कम कर सकूं। आज मुझे खुद इतनी पीड़ा हो रही है कि डॉक्टर या दवाई भी इसे कम नहीं कर पा रहे हैं। डॉक्टर पांच बार मेरे छोटे-बड़े ऑपरेशन कर चुके हैं लेकिन दर्द है कि कम होने का नाम ही नहीं ले रहा।
21 दिसंबर 2012
मैं सांस भी नहीं ले पा रही हूं। डॉक्टरों से कहो मुझे एनीथिस्यिा न दें। जब भी आंखे बंद करती हूं तो लगता है कि मैं बहुत सारे दंरिदों क बीच फंसी हूं। जानवर रूपी ये दरिंदे मेरे शरीर के एक-एक अंग को नोच रहे हैं। बहुत डरावने हैं ये लोग। भूखे जानवर की तरह मुझ पर टूट पड़े हैं। मेरे को बुरी तरह रौंद डालना चाहते हैं। मां मैं अब अपनी आंखे बंद नहीं करना चाहती। मेरे आस-पास के सभी शीशे तोड़ डालो। मुझे बहुत डर लग रहा है। मैं अपना चेहरा नहीं देखना चाहती।
22 दिसंबर 2012
मां मुझे नहला दो। मैं नाहना चाहती हूं। मैं सालों तक शॉवर के नीचे बैठे रहना चाहती हूं। उन जानवरों की गंदी छुअन को धोना चाहती हूं जिनकी वजह से मैं अपने ही शरीर से नफरत करने लगी हूं। मैंने कई बार बाथरूम जाने की कोशिश भी की। लेकिन पेट की तकलीफ की वजह से उठ ही नहीं पा रही हूं। मेरे शरीर में इतनी शक्ति नहीं है कि मैं सिर उठाकर आईसीयू के बाहर शीशे के पार खड़े अपने को देख सकूं। मां आप मुझे छोड़कर मत जाना। अकेले डर लगता है। जैसे ही आप जाती हैं मेरी धड़कन बढ़ जाती है और मैं आपकों तलाशने लगती हूं।
23 दिसंबर 2012
मां ये चिकित्सीय उपकरणों की आवाज मुझे बार-बार ऐसे ट्रैफिक सिग्नल की याद दिलाते हैं जिसके तहत वाहन आवाजें कर रहे हैं लेकिन कोई रुकने का नाम नहीं ले रहा। इसी आवाज में मैं चीख रही हूं। मदद मांग रही हूं। लेकिन कोई नहीं सुन रहा। इस कमरे की शांति मुझे उस रात की ठंड को याद दिलाती है जब उन जानवरों ने मुझे सड़क पर फेंक दिया। मां आपको याद है एक बार पापा ने मुझे थप्पड़ मार दिया था और आप पापा से लड़ने लगी थीं। मां पापा कहां हैं। वो मुझसे मिलने क्यों नहीं आ रहे। वो ठीक तो हैं। उन्हें कहना वह दुखी ना हों।
25 दिसंबर 2012
मां आपने मुझे हमेशा मुश्किलों से लड़ने की सीख दी है। मैं इन जानवरों को सजा दिलाना चाहती हूं। इन दंरिदों को ऐसे ही नहीं छोड़ा जा सकता। वहशी हैं ये लोग। इनके लिए माफी का सोचना भी भूल होगी। इन्होंने मेरे दोस्त को भी बुरी तरह पीटा। जब वह मुझे बचाने की कोशिश कर रहा था। मेरे दोस्त ने मुझे बचाने की बहुत कोशिश की। वह भी बहुत जख्मी हुआ। अब कैसा है वो।
26 दिसंबर 2012
मां मैं बहुत थक गई हूं। मेरा हाथ अपने हाथ में ले लो। मैं सोना चाहती हूं। मेरा सिर मां आप अपने पैरों पर रख लो। मां मेरे शरीर को साफ कर दो। कोई दर्द निवारक दवाई भी दे दो। पेट का दर्द बढ़ता ही जा रहा है। डॉक्टरों से कहो अब मेरे शरीर का कोई और हिस्सा ना काटें। यह बहुत पीड़ादायक होता है। मां मुझे माफ कर देना। अब मैं जिंदगी से और लड़ाई नहीं लड़ सकती।