भारतीय इतिहास में इकलौते अटल बिहारी वाजपेयी ही ऐसे प्रधानमंत्री रहे हैं जो पद के लालच में नहीं थे. बाकी अगर आप गांधी परिवार के प्रधानमंत्रियों को देखेंगे तो आप उनका पद के प्रति लालच साफ़-साफ देख पायेंगे. इसी क्रम में इंदिरा गांधी ने तो अपने पद को बचाने के लिए देश के इतिहास से ही खिलवाड़ कर दिया था.

आज तक हमारे बच्चे अकबर को महान और महाराणा प्रताप को कायर समझते हैं.

आज हमारे बच्चे स्कूल की किताबों में जो इतिहास पढ़ते हैं वह एक वामपंथी समूह के लोगों द्वारा लिखा गया है.

इसमें साफ़तौर पर अकबर को महान बताया गया है और महाराणा प्रताप को दरकिनार करने का काम किया है. इंदिरा गाँधी को भी पता चल गया था कि भारत के सच्चे इतिहास से खिलवाड़ किया जा रहा है किन्तु फिर भी वह मजबूर थीं. आज भी यह वामपंथी लोग भगवान राम के वजूद को नहीं मानते हैं और कभी भी कुछ भी लिख देते हैं. वामपंथी लोगों ने स्कूल की किताबों में यह नहीं लिखा कि इन लोगों ने भारत देश को किस तरह से लुटा है.

तो आइये आज पढ़ते हैं कि इंदिरा गांधी से क्या गलती हुई थी जिसकी सजा हमारे स्कूली बच्चे आज तक काट रहे हैं-

इंदिरा की एक सबसे बड़ी गलती

यह बात सन 1971 की है. इंदिरा को प्रधानमंत्री बनने के लिए वामपंथी लोगों से मदद चाइये थी. तो समझौता यह हुआ था कि आप प्रधानमंत्री बन जाओ और हमारे लोगों को देश का शिक्षा बोर्ड दे दो. इसीलिए कट्टर वामपंथी विचारधारा वाले डा. नूरूल हसन को केन्द्रीय शिक्षा राज्यमंत्री का पद सौंपा गया था.

डा. हसन जिस काम के लिए आये थे उसमें लग जाते हैं.

इन्होनें प्राचीन हिन्दू इतिहास तथा पाठय पुस्तकों के विकृतिकरण का बीड़ा उठा लिया.

सन 1972 में इन सेकुलरवादियों ने भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद का गठन कर इतिहास पुनर्लेखन की घोषणा की. सुविख्यात इतिहासकार यदुनाथ सरकार, रमेश चंद्र मजूमदार तथा श्री जीएस सरदेसाई जैसे सुप्रतिष्ठित इतिहासकारों के लिखे ग्रंथों को नकार कर नये सिरे से इतिहास लेखन का कार्य शुरू कराया गया.

घोषणा की गई कि इतिहास और पाठ्यपुस्तकों से वे अंश हटा दिये जाएंगे जो राष्ट्रीय एकता में बाधा डालने वाले और मुसलमानों की भावना को ठेस पहुँचाने वाले लगते हैं.

डा. नूरूल हसन ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भाषण करते हुए कहा- महमूद गजनवी औरंगजेब आदि मुस्लिम शासकों द्वारा हिन्दुओं के नरसंहार एवं मंदिरों को तोड़ने के प्रसंग राष्ट्रीय एकता में बाधक है अत: उन्हें नही पढ़ाया जाना चाहिए.

वामपंथियों ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम के महान स्वतंत्रता सेनानी सावरकर पर अंग्रेजों से क्षमा मांगकर अण्डमान के काला पानी जेल से रिहा होने जैसे निराधार आरोप लगाये और उन्हें वीर की जगह कायर बताने की बात लिखी है.

(यह बातें डा. अमरीश प्रधान द्वारा एक संगोष्टी में बताई गयी है)

तो स्कूल पुस्तकें जांचने के लिए कोई बोर्ड नहीं है

देश का इससे बड़ा दुर्भाग्य कुछ हो नहीं सकता है कि हमारे बच्चे नहीं पढ़ पा रहे हैं कि औरंगजेब ने किस तरह से देश में हिन्दुओं का कत्लेआम करवाया था. इन लेखकों ने यह तो लिख दिया कि गांधी की हत्या नाथूराम ने की थी किन्तु यह नहीं बताया कि गुरु गोविन्द जी कैसे शहीद हुए थे. सबसे बड़ा मजाक यह है कि स्कूल की किताबों में कौनसा लेखक क्या लिख रहा है इसकी जाँच करने के लिए कोई भी बोर्ड नहीं है. कोई लिखता है कि राम नहीं थे तो कोई महाभारत को एक कहानी लिखता है. किन्तु एक खास धर्म से पंगा नहीं लेता है. आज भी कांग्रेस की दया के चलते ही कई वामपंथी लोग शिक्षा बोर्ड पर कब्जा किये बैठे हैं.

अब वक़्त आ गया है कि

आज वक़्त आ गया है कि इस झूठे इतिहास को जड़ से उखाड़ फ़ेंक दिया जाये. आप अगर चाहते हैं कि अब हमारे बच्चे देश का सच्चा इतिहास पढ़े तो आपको आज ही अपनी आवाज बुलंद करनी होगी.

आपकी राय का हमें इन्तजार रहेगा और साथ ही साथ इंदिरा गांधी के इस काम को जनता के सामने लाये जाने की आवश्यकता है इसलिए इस लेख को अधिक से अधिक लोगों तक जरूर पहुचायें.

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