भारतीय राजनीति में गुरू को ही मात देते उनके यह चेले
युद्ध का मैदान हो या राजनीति गुरू-शिष्य की जोड़ी को हमेशा ही याद किया जाता है। राजनीति के महाभारत में राजनीति का ककहरा पढ़ने वाले चेले मौका मिलते ही अक्सर अपने ही गुरू को दरकिनार कर देते हैं। सच है कि राजनीति के इस युद्ध में कोई भी अपना सगा नहीं है।
आज हम आपको भारतीय राजनीति के उन चेलों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने अपने ही गुरू को मात देकर पार्टी के असली उत्तराधिकारी बन बैठे हैं। हांलाकि इन नामों की सूची तो काफी लंबी है, लेकिन हम कुछ गिने चुने नाम आपके सामने पेश करने जा रहे हैं, जो आए दिन सोशल मीडिया में चर्चा के केंद्र बिंदू बने रहते हैं।
अरविंद केजरीवाल बनाम अन्ना हजारे
भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ असली बिगुल बजाने वाले अन्ना हजारे को देश में भला कौन नहीं जानता है। लेकिन विडंबना यह है कि जहां अन्ना हजार दिशाहीन हो चुके अपने आंदोलन में जान फूंकने की कोशिश में लगे हुए हैं, वहीं उनके शिष्य अरविंद केजरीवाल आज की तारीख में भारतीय राजनीति के चमकते सितारे बन चुके हैं, आज की तारीख में वह दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं। अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद से राजनीति को बदलने के नाम अरविंद केजरीवाल ने अपने गुरू से अलग होकर आम आदमी पार्टी बना ली। जबकि उनके गुरू अन्ना हजारे हमेशा-हमेशा के लिए अकेले रह गए।
अखिलेश यादव बनाम मुलायम सिंह यादव
सिडनी में पढ़ाई कर रहे है अखिलेश यादव राजनीति की एबीसीडी भी नहीं जानते थे। लेकिन उनके पिता मुलायम सिंह यादव ने अपनी छोड़ी हुई सीट कन्नौज से उन्हें सांसद बनवाया, इसके बाद अखिलेश यादव ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। समाजवादी पार्टी पर वर्चस्व स्थापित करने के लिए पिता-पुत्र में साल 2017 तक शीतयुद्ध चला। आखिरकार अखिलेश यादव ने बाजी पलटते हुए सपा पर एकाधिकार स्थापित कर लिया। पार्टी वर्चस्व को लेकर उपजे कलह के चलते विधानसभा चुनाव-2017 में सपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। आज की तारीख में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का नाम अखिलेश यादव है।
नरेंद्र मोदी बनाम लाल कृष्ण आडवाणी
अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी भारतीय जनता पार्टी के पिता माने जाते हैं। लोकसभा चुनाव-2014 में लाल कृष्ण आडवाणी को पार्टी का मार्गदर्शक बनाकर सक्रिय राजनीति से दरकिनार कर दिया गया। यहां तक कि प्रधानमंत्री तो दूर राष्ट्रपति निर्वाचित करने के योग्य भी नहीं समझा गया। पीएम मोदी राजनीतिक सभाओं में अक्सर यह कहते हुए सुने जाते हैं उनके राजनीतिक गुरू लाल कृष्ण आडवाणी से उनके कोई मतभेद नहीं है। लेकिन सत्ताधारी पार्टी भाजपा में जो स्थान लाल कृष्ण आडवाणी को मिलने चाहिए थे, आज वह उस अधिकार से वंचित हैं।
कपिल मिश्रा बनाम अरविंद केजरीवाल
दिल्ली के पूर्व जलदाय मंत्री कपिल मिश्रा आए दिन अपने विद्रोही बयानों से चर्चा के केंद्र बिंदू बने रहते हैं। दरअसल अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान कपिल मिश्रा और अरविंद केजरीवाल एक दूसरे के मित्र बने। आंदोलन के समय दोनों ने एक दूसरे का जमकर साथ दिया। लेकिन आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद कपिल मिश्रा ने अपने ही राजनीतिक गुरु अरविंद केजरीवाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी। जिस केजरीवाल से कपिल मिश्रा ने भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ना सीखा आज उसी केजरीवाल के विरूद्ध आए दिन राजनीतिक ताल ठोंकते नजर आते हैं कपिल मिश्रा। आज की तारीख में इन दोनों नेताओं की राहें बिल्कुल अलग-अलग है।