दोस्तों देश की राजनीति का एक ऐसा किस्सा आपके सामने ला रहे है जिसको जानकर आप हैरान हो सकते है। ये तो सभी जानते है साल 1999 में केंद्र में एनडीए की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार थी, लेकिन उनकी ये सरकार मात्र 13 महीने ही रही। क्योंकि गठबंधन की अहम सहयोगी जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके ने उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया और फिर एनडीए बहुमत शाबित नहीं कर पाई और सरकार गिर गई।

उस दौरान सोनिया गांधी ने सरकार बनाने की कोशिशें तेज कर दीं। आखिर में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने इस पर वीटो कर दिया और देश में मध्यावधि चुनाव हुए। मगर दिलचस्प यह है कि अब तक ज्यादातर लोग यह मानते थे कि उस वक्त सोनिया को प्रधानमंत्री बनने की हड़बड़ी थी। कहा जाता है कि सोनिया ने राष्ट्रपति केआर नारायणन को समर्थन पत्र की सूची और सरकार बनाने का दावा, दोनों सौंप दिए थे। मगर राष्ट्रपति नारायणन की माने तो सोनिया गांधी खुद प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहती थीं।

उन्होंने नारायणन से कहा था कि अगर गठबंधन बहुमत के लिए जरूरी आंकड़ा जुटा लेता है, तो वह मनमोहन सिंह को शपथ दिलवा दें। यानी सोनिया 2004 में नहीं, बल्कि उससे पांच साल पहले ही मनमोहन को गद्दी पर बैठाने का फैसला कर चुकी थीं। शायद इसी रणनीति के तहत 1999 में मनमोहन सिंह को पहली और आखिरी बार लोकसभा चुनाव लड़वाया गया था। मगर, साउथ दिल्ली सीट पर वह बीजेपी के विजय कुमार मल्होत्रा से 30 हजार वोटों से चुनाव हार गए।

वेस्टलैंड पब्लिकेशन से आई और अंग्रेजी में लिखी गई यह किताब दरअसल 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान वीर सांघवी द्वारा किए गए एक टीवी शो का बाईप्रॉडक्ट है। सांघवी के अनुसार, शो की रिसर्च के दौरान मैंने पाया कि नई पीढ़ी को भारतीय राजनीति के कई अहम पड़ावों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। इसी को ध्यान में रखते हुए यह किताब लिखी गई। इसमें 1971 से 2009 तक के चुनावों के हर वो मुद्दे है जिन्हे शयद जनता नहीं जानती।

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