1965 की जंग में इस भारतीय सैनिक ने अकेले ही उड़ा दिए थे पाकिस्तान के 10 टैंक
इंटरनेट डेस्क। भारत के पंजाब राज्य में अमृतसर से 60 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गाँव असल उत्तर है। यहाँ पर भारतीय सेना के सबसे बड़े हीरो माने जाने वाले अदुल हामिद का स्मारक है। जहां एक तरह हामिद का नाम भारतीय सेना के सबसे सम्मानित सैनिकों में शामिल है, लेकिन उनकी विरासत काफी हद तक बेकार है। इस परम वीर चक्र विजेता को भारत-पाक के 1965 के युद्ध के दौरान देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए 50 वर्ष से ज्यादा हो गए है। हालाँकि अभी तक भी कई लोगों को इस बहादुर सैनिक के युद्ध के मैदान पर किये गए कारनामों के बारे में पता नहीं है।
अब्दुल हामिद का जन्म 1 जुलाई 1933 को उत्तर प्रदेश के जिला गाज़ीपुर के धामूपुर गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद उस्मान और माता का नाम सकिना बेगम था और हामिद के तीन भाई और दो बहनें थी। अब्दुल के पिता पेशे से एक दर्जी थे और अब्दुल सेना में शामिल होने का फैसला करने से पहले अक्सर कपड़े सिलने में उनकी मदद करते थे।
हामिद उस समय 20 वर्ष के थे जब उन्हें वाराणसी में सेना में भर्ती कराया गया था। नसीराबाद में ग्रेनेडियर रेजिमेंटल सेंटर में अपने प्रशिक्षण के बाद, उन्हें 1955 में 4 ग्रेनेडियर में तैनात किया गया था। प्रारंभ में, हामिद राइफल कंपनी में सेवारत थे और फिर उन्हें एक रीकोइलेस पलटन में तैनात किया गया था। उन्होंने थांग ला में सन् '62 का युद्ध लड़ा था।
युद्धविराम घोषित होने के बाद उनकी इकाई अंबाला चली गई जहां अब्दुल को एक प्रशासनिक कंपनी के कंपनी क्वार्टर मास्टर हैविल्डर (सीक्यूएमएच) नियुक्त किया गया था। फिर भी, 106 मिमी रीकोइलेस राइफल का सबसे अच्छा सैनिक होने के कारण, बटालियन कमांडर उन्हें राइफल पलटन के एनसीओ के रूप में वापस लेना चाहता था।
सन् 1965 में भारत-पाक युद्ध के समय सेना में चौथे ग्रेनेडियर के रूप में सेवारत थे। खबर आई कि जम्मू-कश्मीर की सीमा पर भारतीय सेनाओं को संचार और आपूर्ति मार्गों को काटने के लिए दुश्मन ने जम्मू में अख़नूर पर हमला किया है। हामिद की बटालियन चौथी ग्रेनेडियर ने पंजाब के खेम करण सेक्टर के रास्ते पर चिमा गांव के पास एक महत्वपूर्ण क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। वहां उन्हें दुश्मन को असल उत्तर के गांव के पास रोके रखने का काम दिया गया था।
8 सितंबर को, दुश्मन ने ग्रेनेडियर की स्थिति पर बार-बार हमले किए। इनमें सबसे गंभीर हमला तब हुआ जब दुश्मन पैटन टैंक की रेजिमेंट के साथ हमला किया। इस हमले के दौरान अपने आक्रमण को मजबूत करने के लिए जीप पर सवार हामिद अपनी बंदूक यूनिट से बाहर चले गए। और जैसे ही दुश्मन सेना के टैंक नजदीक आये, हामिद ने उनपर गोलीबारी शुरू कर दी। इसका परिणाम यह हुआ कि एक टैंक में आग लग गई और दुश्मन 2 टैंक वहीं छोड़कर भाग गए।
दिन के अंत तक, हामिद ने दुश्मन के दो टैंक उड़ा दिए वहीं चार टैंक छोड़कर भाग गए। उसके बाद उन्होंने सेना इंजीनियरों को बुलाया और उनसे तुरंत क्षेत्र में एंटी-टैंक माइंस को बाहर निकालने के लिए कहा।
2 दिन बाद, पाकिस्तान ने फिर भारतीय सेना पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध ने हामिद अकेले ने दुश्मन सेना के 8 टैंकों को नष्ट कर दिया हालाँकि इस दौरान हामिद खुद बुरी तरह से जख्मी हो गए और 3 दिन की लड़ाई के बाद मिली विजय को देखने के लिए जीवित नहीं रहे। अपनी इस बहादुरी के लिए उनकों भारतीय सेना का सर्वोच्च सम्मान परम वीर चक्र से सम्मानित किया।