गोरखा रेजिमेंट अकेले ही छुड़ा सकती है दुश्मन की बटालियन के छक्के, पढ़ें 2 किस्से
आपको जानकारी के लिए बता दें कि जब ब्रिटीश आर्मी ने साल 1815 में नेपाल पर आक्रमण किया तब उन्हें गोरखा योद्धाओं से करारी शिकस्त मिली थी। ब्रिटिश अफसरों ने यह निर्णय लिया कि वह गोरखाओं को हरा नहीं सकते हैं, इसलिए क्यों न उन्हें अपने साथ मिला लिया जाए। इसके बाद ब्रिटीश आर्मी ने गोरखाओं को अपनी सेना में शामिल होने का प्रस्ताव दिया। गोरखाओं ने दोनों विश्व युद्धों के अलावा अनेक लड़ाइयों में भाग लिया।
भारत की आजादी के बाद इंडियन आर्मी में अब भी गोरखा रेजिमेंट है। कहा जाता है कि जब कोई गोरखा अपनी खुखरी बाहर निकाल लेता है, तब वह दुश्मन का खून बहाए बिना म्यान में वापस नहीं रखता। ऐसी अनेक कहानियां हैं, जिसमें गोरखा योद्धाओं ने अकेले ही दुश्मन के टैंक ध्वस्त कर दिए तथा बटालियनों को मुंहतोड़ जवाब दिए। आज हम आपको ऐसे 2 गोरखा योद्धाओं की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने अकेले ही दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे।
1- अकेले ही 30 तालिबानियों मौत देने वाला यह योद्धा
आपको बात दें कि गोरखा योद्धा दीप प्रसाद पुन साल 2010 में अफगानिस्तान में कार्यवाहक सार्जेंट के रूप में तैनात थे। एक दिन शाम को अचानक 30 तालिबानियों ने हमला कर दिया, उस समय दीप प्रसाद पुन अकेले ही ड्यूटी पर थे। फिर क्या था, देखते ही देखते रॉकेट लॉन्चर, ग्रेनेड तथा एके-47 से दीप ने 30 तालिबानियों को मार गिराया। इस अविश्वसनीय बहादुरी के लिए दीप प्रसाद पुन को ब्रिटेन में वीरता के दूसरे सबसे बड़े पुरस्कार से नवाजा किया गया।
2- जब गंजू लामा ने 3 जापानी टैंकों को ध्वस्त कर दिया
द्वितीय विश्व युद्ध अपने चरम पर था। युद्ध के दौरान राइफलमैन गंजू लामा की बाईं कलाई टूट चुकी थी तथा दाहिने हाथ और पैर में भी गंभीर चोटें आई थीं। बावजूद इसके गंजू लामा युद्ध मैदान में रेंग-रेंग कर आगे बढ़ते रहे और अपने एंटी टैंक गन से एक-एक कर दुश्मन के तीन टैंकों को ध्वस्त कर दिया। इन्हें स्ट्रेचर पर लादकर अस्पताल लाना