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दोस्तों, आपको जानकारी के लिए बता दें कि किसान क्रांति यात्रा खत्म हो चुकी है और दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर लाठियां खाने के बाद किसान अपने-अपने घरों को वापस लौट चुके हैं। लेकिन आपको इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि इस किसान आंदोलन में शामिल हुए ज्यादातर किसान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से आए थे, और इनमें से अधिकांश जाट समुदाय के थे। इस जाट समुदाय का झुकाव लोकसभा चुनाव-2014 में भाजपा की ओर था। लेकिन मोदी सरकार ने इन प्रदर्शनकारी किसानों के साथ जिस तरह का व्यवहार किया है, इससे ये किसान लोकसभा चुनाव-2019 में भाजपा से दूरी बना सकते हैं।

दोस्तों, आपको बता दें कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश से करीब दो दर्जन सांसद चुनकर ​पार्लियामेंट आते हैं। फिलहाल यहां की सभी सीटों पर भाजपा का कब्जा है। राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया अजीत सिंह की तरफ जाटों का पारंपरिक झुकाव रहा है, लेकिन 2014 में जाटों ने भाजपा के पक्ष में जमकर मतदान किया था।

यूपी में हुए हालिया उपचुनावों से यह साबित हो चुका है कि जाटों का अब भाजपा से मोहभंग हो चुका है। कैराना उप चुनाव में रालोद की उम्मीदवार तबस्सुम हसन को विजयश्री मिली थी। इस उपचुनाव में जाटों ने भाजपा को नहीं बल्कि महागठबंधन को वोट दिया था। पश्चिम उत्तर प्रदेश में जाटों के अलावा मुस्लिम समुदाय की भी अच्छी खासी संख्या है।

पश्चिमी यूपी की संसदीय सीटों में बागपत, मुजफ्फरनगर, कैराना, नगीना, सहारनपुर, मुरादाबाद, रामपुर, गौतम बुद्ध नगर, गाजियाबाद, हाथरस, मथुरा, फतेहपुर सीकरी, आगरा, अलीगढ़, संभल, बिजनौर, मेरठ, अमरोहा और बुलंदशहर का नाम शामिल है।

किसान आंदोलन खत्म होने के बाद भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने कहा कि हम जीत गए और मोदी सरकार अपने उद्देश्यों में विफल रही है। टिकैत के इस बयान से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के यह किसान लोकसभा चुनाव-2019 में भाजपा से दूरी बना सकते हैं।

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