प्रणब मुखर्जी का नाम देश के सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रप​तियों में शुमार किया जाता है। प्रणब दा जुलाई 2012 से जुलाई 2017 तक राष्ट्रपति पद पर कार्यरत रहे। इसके अतिरिक्त वह वित्त, रक्षा और विदेश जैसे अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं। साल 2004 से लेकर 2012 तक कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार में उन्हें संकटमोचक माना जाता था। सच कहें तो प्रणब मुखर्जी आज की तारीख में भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह हैं।

आपको जानकारी के लिए बता दें कि लोकसभा चुनाव 2019 से पहले मोदी सरकार ने प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न से सम्मानित किया है। दरअसल यह चर्चा चर्चा प्रणब मुखर्जी की योग्यता के बारे में नहीं है, क्योंकि उनकी सियासी योग्यता पर सवाल उठाना मूर्खतापूर्ण बात होगी। इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रणब मुखर्जी भारत रत्न के हकदार हैं।

लेकिन इस चुनावी साल में प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न से सम्मानित करके भाजपा ने अपने इस बड़े प्रतीकात्मक फ़ैसले के ज़रिए एक साथ कई संदेश दिए हैं। यह कहना भी लाजिमी होगा कि भारत रत्न और पद्म पुरस्कार शुरू से ही राजनीतिक रहे हैं।

साल 1988 में चुनाव से ठीक पहले तमिलनाडु के मतदाताओं को रिझाने के लिए राजीव गांधी सरकार ने एमजी रामचंद्रन को भारत रत्न से सम्मानित किया था। उस वक्त राजीव गांधी सरकार को खासी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था।

बहरहाल हम अभी प्रणब दा की बात करते हैं। बता दें कि 1984 और 2004 में योग्य होने के बावजूद प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री बनने से चूक गए। यह बात सभी जानते हैं कि गांधी परिवार के विश्वासपात्र नहीं होने की वजह से प्रणब मुखर्जी कभी प्रधानमंत्री नहीं बन पाए।

दरअसल भारत रत्न प्रणब मुखर्जी को बीजेपी ने कांग्रेस की परिवार केंद्रित राजनीति के शिकार के रूप में पेश किया है। बीजेपी ने देश को यह जताने की पुरजोर कोशिश की है कि कांग्रेस ने एक खास परिवार से बाहर के लोगों को वह जगह नहीं दी, जिसके वह हकदार थे। बतौर उदाहरण सरदार वल्लभ भाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री, नरसिंह राव तथा प्रणब मुखर्जी। सच कहें तो बीजेपी ने प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न से सम्मानित करके इस स्क्रीप्ट को और भी दमदार बना दिया है।

आपको याद दिला दें कि नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक आयोजन में प्रणब मुखर्जी को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाकर पिछले वर्ष से ही उन्हें पार्टी से अलग एक विशेष पहचान देने की कोशिश शुरू हो चुकी थी। हांलाकि उस कार्यक्रम में प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति को लेकर जो बातें कहीं, उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया था कि मंच भले ही अलग हो लेकिन उनकी सोच में कोई फर्क नहीं आया है।

इससे अलग हटकर आपको जानने की जरूरत है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा अपना पैर जमाने के लिए जोरदार संघर्ष करती नजर आ रही है। ऐसे में प्रणब दा के जरिए भाजपा ने खुद को बंगाली अस्मिता का सम्मान करते हुए दिखाने का प्रयास किया है।

अब लोकसभा चुनाव में भाजपा यह बात खुलकर कहेगी कि ​कांग्रेस पर जिस परिवार का कब्जा है, उसने बंगाल के इस सपूत को एक नहीं दो बार प्रधानमंत्री बनने से रोका है। लेकिन हमने उसे सर्वोच्च सम्मान देकर बंगाल का गौरव बढ़ाया है। बंगाल से भाजपा को बहुत उम्मीदें हैं।

अब यह स्पष्ट हो चुका है कि लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा उत्तर भारत और अन्य राज्यों से होने वाले संभावित सियासी नुकसान की भरपाई पश्चिम बंगाल से करना चाहती है। इन सभी बातों का निष्कर्ष यह है कि कांग्रेस के एक विशेष परिवार को राजनीति में ओछा दिखाते हुए बंगाल में उसका राजनीतिक लाभ उठाना भाजपा का मुख्य मकसद है। वहीं भारत रत्न देने से सम्माानित प्रणब दा अब इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सूची में शामिल हो चुके हैं। जबकि भारतीय राजनीति में प्रणब मुखर्जी को सोनिया गांधी से ऊपर बिठाकर उन पर सियासी चिकोटी काटने का काम भी किया गया है।

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