आपको याद दिला दें कि लोकसभा चुनाव 2019 से पहले ही भारतीय जनता पार्टी की आखिरी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक पिछले साल सितंबर के महीने में दिल्ली में संपन्न हुई थी। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की इस बैठक में अमित शाह को लोकसभा चुनाव 2019 तक सेनापति बने रहने का दायित्व मिला, जबकि नरेंद्र मोदी ने एक नए भारत का संकल्प लिया था।

लेकिन इस अहम बैठक से सुल्तानपुर के सांसद वरुण गांधी नदारद थे। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मौजूद एक केंद्रीय नेता ने कहा था कि आज भारतीय जनता पार्टी जितने बड़े पैमाने पर फैल चुकी है, उसमें बिना वजह विरोध करने वाले के लिए जगह ही कहां है? बता दें कि जिस शाम भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई थी, इसके एक शाम पहले सांसद वरुण गांधी अम्बाला की एक यूनिवर्सिटी में छात्रों को भाषण दे रहे थे।

वरिष्ठ पत्रकार शेखर अय्यर का कहना है कि वरुण गांधी भाजपा हाईकमान के विरूद्ध खुलकर कुछ भी नहीं बोलते, लेकिन अलग-अलग जरूर दिखते हैं। इसलिए भाजपा आम चुनाव 2019 से पहले इनके खिलाफ एक्शन लेकर उन्हें हीरो नहीं बनाना चाहती है।

शेखर अय्यर का मानना है कि लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान टिकट देते समय भाजपा का रवैया वरुण गांधी के खिलाफ साफ दिख जाएगा। हांलाकि वरुण गांधी ने कभी भी खुलकर नरेंद्र मोदी या अमित शाह की कभी आलोचना नहीं की है। लेकिन वरुण गांधी के व्यवहार से हमेशा यही लगा है कि वह अपनी पार्टी की सरकार से नाखुश हैं।

वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामशेषन कहते हैं कि जिस दिन से भाजपा नरेंद्र मोदी और अमित शाह के प्रभाव में आई, उसी दिन से वरुण की जगह सिमटनी शुरू हो गई। खैर जो भी हो, जहां एक तरफ वरुण शायद लोकसभा चुनाव 2019 आने तक अपने अपने पत्ते न खोलने का मन बनाकर बैठे हैं, वहीं उनके प्रति भाजपा का रवैया भी आम चुनाव से पहले ही साफ हो जाएगा।

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