पनीर, चीज़, सॉस, शर्बत, दम बिरयानी और तंदूर यहां तक कि रोटी भी रसोई तक विदेशों से ही भारत में पहुंची। इस स्टोरी में हम आपको बताने जा रहे हैं कि कौन-कौन से चटकदार व्यंजन भारतीय रसोई में पहले शामिल नहीं थे, जब कि विदेशियों ने इन शानदार खानों को ना केवल हमसे रूबरू करवाया बल्कि बनाना भी सिखाया।

सबसे पहले हम बात करते हैं रोटी की। जी हां, दोस्तों रोटी को सेंकने की कला अगर अमेरिका से भारत नहीं पहुंची होती तथा डच लोगों ने इसे और बेहतर नहीं बनाया होता तो भारत के लोग चपाती से आज भी मरहूम रहते।

प्राचीन इतिहास के अनुसार, गेंहू की खेती भारत में मोहनजोदड़ो की सभ्यता से हो रही थी, लेकिन आटे का इस्तेमाल रोटी नहीं बल्कि अधिकांशतया केवल पूड़ी बनान के लिए होता था।

भूने हुए गोश्त से लजीज व्यंजन बनाने की कला सीखने के लिए भारत को अमरीकियों, पारसियों, तुर्कों और अरबों को धन्यवाद करना चाहिए। पुर्तगालियों ने हमें गोश्त के अलावा अचार तैयार करने की कला सिखाई। पुर्तगाली शुरू से ही हल्दी और नमक का खूब इस्तेमाल करते थे।

तुर्क और मुग़ल जो कभी इसे चटनी कहते थे, भारत ने इनसे सब्ज़ियों और फलों का मुरब्बा बनाना सीखा। हिन्दू शासकों के अधीन काम करने वाले इंडोनेशिया के रसोइयों ने भाप में पकी इडली का इजाद किया था। आंध्र प्रदेश के स्थानीय इलाकों, कलिंग तथा विजयनगर साम्राज्य में मालपुआ बनाने के लिए भांप का ही इस्तेमाल किया जाता था।

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