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बता दें कि पौराणिक कहानियों में कई ऐसे देवताओं का उल्लेख मिलता है, जिन्हें किसी ना किसी वजह से स्त्री का रुप धारण करना पड़ा था। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु, भगवान ब्रह्मा, देवराज इंद्र और अर्जुन तक को स्त्री रुप धारण करना पड़ा था। हालांकि इन सबके पीछे कोई ना कोई ठोस वजह रही है। हांलाकि इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं कि एक बार भगवान श्रीगणेश को भी स्त्री का रूप धारण करना पड़ा था।

हिंदू धर्म में महादेव और माता पार्वती के पुत्र गणेश जी के इस स्त्री रुप को विनायकी के नाम से जाना जाता है। धर्मोत्तर पुराण में श्रीगणेश जी के विनायकी स्वरूप का वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त वन दुर्गा उपनिषद में भी गणेश जी के स्त्री रूप का उल्लेख मिलता है, जिसे गणेश्वरी का नाम दिया गया है।

पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार जब अंधक नाम के राक्षस ने जबरदस्ती माता पार्वती को अपनी अर्धांगिनी बनाने की कोशिश की, तब मां पार्वती ने सहायता के लिए अपने पति भगवान शिव को बुलाया। राक्षस अंधक से देवी पार्वती की रक्षा करने के लिए भगवान शिव ने अपना त्रिशूल उठाया और उसके आर-पार कर दिया, लेकिन अंधक की मृत्यु नहीं हुई। ठीक इसके विपरीत त्रिशूल के प्रहार से उस राक्षस के शरीर से जितनी रक्त की बूंदें निकली उनसे राक्षसी अंधका का निर्माण होता चला गया।

ऐसा देख माता पार्वती को यह बात समझ में आ गई कि हर दैवीय शक्ति के भीतर दो तत्व मौजूद होते हैं। पहला पुरुष तत्व जो उसे मानसिक रूप से सक्षम बनाता है, दूसरा स्त्री तत्व जो उसे शक्ति प्रदान करता है। इसके बाद माता पार्वती ने सभी देवियों का आह्वान किया, जो शक्ति का ही रूप हैं।

इसके बाद सभी देवियों ने अंधक राक्षस का खून जमीन पर गिरने से पहले अपने भीतर समा लिया, जिससे राक्षसी अंधका का उत्पन्न होना कम हो गया। बावजूद इसके अंधक राक्षस के शरीर से गिरते रक्त को खत्म करना संभव नहीं हो पा रहा था। ऐसे में भगवान गणेश को स्त्री रूप में युद्ध मैदान में उतरना पड़ा। श्रीगणेश जी ने विनायकी के रुप में प्रकट होकर राक्षस अंधक का सारा रक्त पी लिया। इस प्रकार श्री गणेश जी सहित सभी दैवीय शक्तियों के स्त्री रूप की मदद से राक्षस अंधक का सर्वनाश हो सका।

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