बता दें कि 1505 ई. में जब गुरुनानक जी पहली बार दिल्ली आए थे और उन्होंने इस गुरुद्वारे की स्थापना की थी। जी हां, इसका नाम नानक प्याऊ गुरुद्वारा है। नानक प्याऊ गुरुद्वारा के चेयरमैन हरविंदर सिंह का कहना है कि यह दिल्ली का पहला गुरुद्वारा है। ये गुरुद्वारा सिख समुदाय के लिए बहुत महत्व रखता है।

अब आप सोच रहे होंगे कि इस गुरुद्वारे का नाम नानक प्याऊ क्यों है? जी हां, इस नाम के पीछे एक पूरी कहानी है। दरअसल गुरुनानक जी जब पहली बार दिल्ली आए, तो वे इसी जगह पर रूके थे। कहा जाता है कि उन दिनों इस इलाके में शुद्ध पानी तक नसीब नहीं होता था। जमीन से खारा पानी निकलता था। इस समस्या से लोग बहुत परेशान थे। बच्चों की तबियत बिगड़ रही थी। तभी गुरूनानक जी ने अपनी शक्ति से जमीन से मीठा पानी निकाला। इसके बाद स्थानीय निवासियों ने यहां पानी पिया। इसके बाद उन्हें हो रही सभी बीमारियां खत्म हो गईं।

इस घटना को 500 साल बीत चुके हैं, लेकिन आज भी इस कुएं से मीठा पानी निकलता है। आज भी यहां एक प्याऊ है। इसी वजह से इस गुरुद्वारे का नाम नानक प्याऊ गुरुद्वारा रखा गया था। यहां के लोगों का मानना है कि देशभर से श्रद्धालु यहां आते हैं और पानी पीकर जाते हैं। जिसके बाद उनकी तमाम तकलीफें और बीमारियां खत्म हो जाती हैं।

गौरतलब है कि नानक प्याऊ गुरुद्वारे में सबसे पहले लंगर खुद गुरुनानक जी ने शुरू किया था, तब से यह लंगर आज तक चलता आ रहा है। रोजाना यहां हजारों लोग खाना खाने आते हैं, कोई भी भूखा नहीं जाता है।

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