महाभारत युद्ध के बाद कुंती की मृत्यु कैसे हुई, जरूर पढ़ें यह रोचक कथा
आपको जानकारी के लिए बता दें कि यदुवंशी राजा शूरसेन की पृथा नामक कन्या और वसुदेव नामक एक पुत्र था। पृथा नामक कन्या को राजा शूरसेन ने अपनी बुआ के संतानहीन लड़के कुंतीभोज को गोद दे दिया। कुंतीभोज ने इस कन्या का नाम कुंती रखा। इस तरह कुंती अपने असली माता-पिता से दूर रही। चूंकि वसुदेव का विवाह कंस की बहन देवकी से हुआ था, इसलिए कुंती भगवान श्रीकृष्ण की बुआ भी थीं। यही वजह है कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन का साथ दिया, दूसरी वजह यह है कि जब अर्जुन ने श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा से विवाह किया तो वे आपस में जीजा-साले भी बन गए।
महाभारत कथा के मुताबिक, एक बार कुंती के महल में ऋषि दुर्वासा पधारे। कुंती सेवा से प्रसन्न होकर कहा- पुत्री! मै तुम्हारी सेवा से अति प्रसन्न हुआ। मैं तुम्हे ऐसा मंत्र देता हूं, जिसके प्रयोग से तू जिस देवता का स्मरण करेगी, वह तत्काल तेरे समक्ष प्रकट होकर तेरी मनोकामना पूर्ण करेगा। कौतूकवश एक दिन कुंती ने सूर्यदेव का स्मरण किया और उसी क्षण सूर्यदेव प्रकट हो गए। चूंकि कुंती ने सूर्यदेव से एक पुत्र की कामना कर दी, इसलिए कुंती गर्भवती हो गई।
समय आने पर कुंती के गर्भ से कवच-कुंडल धारण किए हुए एक पुत्र उत्पन्न हुआ। समाज के लज्जावश एक मंजूषा में रखकर रात्रि को गंगा में बहा दिया। इस बालक को धृतराष्ट्र के सारथी अधिरथ और उसकी पत्नी राधा ने पाला। इस बालक के कान बहुत ही सुंदर थे, इसलिए इसका नाम कर्ण रखा। महाभारत काल में ब्राह्मण कन्या और छत्रिय पुरुष से उत्पन्न संतान को सूत कहा जाता था। मतलब यह कि अधिरथ सूत था। इसलिए कर्ण को सूतपुत्र' कहा जाता था। चूंकि अधिरथ की पत्नी राधा ने कर्ण को पाला था, इसलिए उसे राधेय भी कहा जाता था।
विवाह योग्य होने पर स्वयंवर-सभा में कुंती ने हस्तिनापुर के राजा पांडु को जयमाला पहनाकर पति रूप से स्वीकार कर लिया। हांलाकि कुंती का वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं रहा। चूंकि पांडु को यह श्राप था जब वे अपनी पत्नी से शारीरिक संबंध बनाते उनकी मौत हो जाती। इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी कुंती को यह समझाने का प्रयास किया कि किसी ऋषि के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करके संतान उत्पन्न करनी चाहिए। कुंती अपने पति पांडु के इस बात का इनकार करके दुर्वासा ऋषि से मिले वरदान के बारे में बताती है। तब पांडु की अनुमति से कुंती धर्मराज का आह्वान करती है। इससे उन्हें युधिष्ठिर का जन्म होता है। फिर क्रम से वह इंद्र से अर्जुन और पवनदेव से भीम को प्राप्त करती है। अंत में कुंती पांडु की दूसरी पत्नी माद्री को भी वह मंत्र सिखा देती है जिसे दुर्वासा ने दिया था। तब माद्री दो अश्विन कुमारों का आह्वान करती है जिससे उन्हें नकुल और सहदेव नामक पुत्र की प्राप्ति होती है।
आगे चलकर हस्तिनापुर साम्राज्य के लिए कौरवों और पांचों पांडवों के बीच महाभारत का युद्ध होता है। महाभारत युद्ध में ना केवल समस्त कौरवों का विनाश हुआ था, बल्कि पांचों पांडवों को भी काफी क्षति उठानी पड़ी थी।
महाभारत युद्ध के लगभग 15 साल बाद राज परिवार के तीन वरिष्ठ गांधारी, कुंती और धृतराष्ट्र वन की ओर प्रस्थान करते हैं। संजय भी उनके साथ होते हैं। ये सभी लोग करीब तीन साल तक गंगा किनारे एक घने वन में बनी एक छोटी सी कुटिया में रहते हैं। एक दिन जब धृतराष्ट्र गंगा में स्नान करने के लिए गए हुए थे, तभी जंगल में आग लग जाती है, जिसकी वजह से गांधारी, कुंती और संजय को कुटिया छोड़नी पड़ती है। वे सभी धृतराष्ट्र के पास आते हैं, ये देखने कि कहीं उन्हें तो कोई खतरा नहीं है।
संजय इन सभी लोगों को जंगल से चलने के लिए कहता है, क्योंकि पूरे जंगल में आग लग चुकी थी। लेकिन धृतराष्ट्र उन्हें कहता है कि यही वो घड़ी है जब उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। तीनों लोग वहीं रुक जाते हैं और उनका शरीर उस आग में झुलस जाता है। संजय उन्हें छोड़कर हिमालय की ओर प्रस्थान करते हैं जहां वे एक संन्यासी की तरह रहते हैं।
इस घटना के करीब एक साल बाद नारद मुनि आकर युधिष्ठिर को उनके परिवारजनों की मृत्यु का दुखद समाचार देते हैं। इसके बाद युधिष्ठिर वहां जाकर उनके अंतिम संस्कार का क्रियाकर्म कर पिंडदान आदि करते हैं।