मुंबई की हाजी अली दरगाह के समक्ष समुद्र की लहरें भी नतमस्तक हो जाती हैं। भारत में एक ऐसा स्थान है जहां हिन्दू-मुस्लिम जाकर एक जगह सिर झुकाते हैं। ऐसी मान्यता हैं कि यहां मांगी गई मुराद कभी भी खाली नहीं जाती हैं, यहां आए हर बन्दे की ख्वाहिश पूरी होती है।

इस दरगाह की एक खास बात यह हैं कि यह जगह ज़मीन से करीब 500 गज दूर समुद्र के किनारे से अंदर की ओर बनी हैं। इस दरगाह में जाने के लिए काफ़ी लम्बा रास्ता तय करना होता है। हाजी अली दरगाह तक पहुचने के लिए सीमेंट से बने एक पूल का सहारा लेना होता है, जिसके दोनों ओर समुद्र हैं। समुद्र ज्यादातर ज्वार के कारण चढ़ा ही होता है, लेकिन समुद्र का पानी जब नीचे होता है तब यह पूल लोगों के आने-जाने के लिए खुला रहता है। लेकिन जब पानी चढ़ा होता है तब यह रास्ता बंद हो जाता है। लेकिन इसे चमत्कार ही कहेंगे कि ज्वार के वक़्त चढ़े हुए समुद्र के पानी की एक बूंद भी इस दरगाह के भीतर नहीं जाती है।

कहते हैं कि एक बार हाजी अली शाह बुख़ारी अपनी मां से आज्ञा लेकर व्यापार करने के लिए पहली बार अपने घर से निकले थे। तब मुंबई, वर्ली के इसी इलाके में रहने लगे थे। यहां रहते हुए उन्होंने महसूस किया कि वे आगे का जीवन भारत में रहकर धर्म प्रचार करते हुए बिताएंगे।

इसके बाद हाजी अली शाह बुख़ारी ने एक एक चिट्ठी लिखकर अपनी मां को इस निर्णय की जानकारी दी। इसके बाद अपनी धन संपत्ति जरूरतमंदों को दान देकर धर्म प्रचार में निकल गए। हाजी अली शाह सबसे पहले हज यात्रा पर गए, इसी दौरान उनकी मौत हो गई। ऐसी मान्यता है कि हाजी अली का अंतिम संस्कार अरब में ही होना था, लेकिन उनका ताबूत अरब सागर में होता हुआ मुंबई की इसी जगह पर आकर रूका। आश्चर्य की बात ये रही कि बीच में कहीं भी वो ताबूत न डूबा और ना ही उसके अंदर एक बूंद पानी गया।

इस चमत्कार को देखकर हाजी अली शाह बुख़ारी को मानने वाले लोगों ने इसी टापू पर उनकी दरगाह बनाने का निर्णय लिया। ऐसी मान्यता है कि समुद्र का तेज ज्वार हाजी अली शाह बुखारी के अदब के चलते कभी अपने दायरे नहीं तोड़ता है।

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