लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा उम्मीदवार स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को कड़ी टक्कर दी थी। बता दें कि राहुल गांधी के जीत का मार्जिन सिर्फ 12.33 फीसदी रहा। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की ओर से कुमार विश्वास भी चुनाव मैदान में थे, लेकिन कुछ खास असर नहीं छोड़ पाए। इसके बाद भाजपा को अमेठी में जीत की संभावनाएं नजर आने लगी और स्मृति ईरानी ने चुनावी तैयारियां शुरू कर दी।

अमेठी में कांग्रेस को सिर्फ दो बार चुनावी हार का सामना करना पड़ा है। पहली बार 1977 में तथा दूसरी बार 1998 में। बावजूद इसके अमेठी के मतदाता गांधी परिवार के प्रति वफादार रहने और कांग्रेस को ही वोट देने की बात कहते हैं। यहां अक्सर यह सवाल उठाए जाते रहे हैं कि हाई प्रोफाइल लोकसभा सीट होने के बावजूद अमेठी में उस तरह का विकास क्यों नहीं हुआ जैसा होना चाहिए था?

बता दें कि इस बार के चुनाव में भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। स्मृति ईरानी यहां लगातार मतदाताओं से संपर्क कर रही हैं। चूंकि राहुल गांधी देशभर में रैलियां कर रहे हैं, इसलिए यहां ज्यादा नहीं दिख रहे हैं। कांग्रेस को पूरा भरोसा है कि न्याय योजना के दम पर वह अमेठी की जंग आसानी से जीत जाएगी।

इसके विपरीत भाजपा का कहना है कि राहुल गांधी हार की डर से केरल जाकर चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में हर किसी के मन यह सवाल उठ रहा है कि आखिर राहुल गांधी ने वायनाड जैसी सुरक्षित सीट क्यों चुनी? क्या उन्हें अमेठी से जीतने का पूरा यकीन नहीं है?

हांलाकि लोकसभा चुनाव 2014 में स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को इतनी कड़ी टक्कर दी थी कि जीत का मार्जिन सिर्फ 12.33 फीसदी कर दिया। ऐसे में स्मृति ईरानी ने कांग्रेस और राहुल गांधी दोनों के लिए खतरे की घंटी बजा दी।

अब बीजेपी सवाल उठा रही है कि यदि राहुल गांधी को अमेठी से चुनाव हारने का डर नहीं था, तो वह वायनाड क्यों पहुंचे। ऐसे में यदि दूसरी सीट चुननी थी तो गुजरात जैसे भाजपा के गढ़ में चुनौती देने क्यों नहीं पहुंचे।

खैर जो भी हो, भाजपा ने स्मृति ईरानी को एक बार फिर से अमेठी से टिकट देकर कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी है। क्योंकि स्मृति ईरानी लंबे समय से अमेठी में सक्रिय हैं। स्मृति ईरानी भी लगातार मतदाताओं से यह बात कह रही हैं कि इस क्षेत्र की राहुल गांधी ने पूरी तरह से उपेक्षा की है। स्मृति ईरानी गांव-गांव घूमकर लोगों से वोट मांग रही हैं और कह रही हैं कि अमेठी में पिछले 15 सालों में कुछ नहीं हुआ है।

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