जब रेल बिजली से चलती है तो इसकी लोहे की पटरियों में भला करंट क्यों नहीं आता? जानें कारण
भारतीय रेल नेटवर्क दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है और रोजाना करोड़ों की संख्या में यात्री इसमें सफर करते हैं। ये रेल नेटवर्क 67000 रुट किलोमीटर तक फैला है। कुल रेलवे रुट में से करीब 46 हजार रूट किलोमीटर इलेक्ट्रिफाइड है यानी बिजली से ट्रेनें चलती है , जो कुल रूट का 71 फीसदी है।
साल 2024 तक देश का 100 फीसदी रेल रूट इलेक्ट्रिफाइड हो जाएगा। ट्रेनें 25 हजार वोल्ट की बिजली से चलती हैं। लेकिन जब पटरियां लोहे की होती है तो आखिर इन पटरियों में करंट क्यों नहीं आता है? इसी बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं।
जानें कारण
भारतीय रेलवे द्वारा बिछाई जाने वाली पटरियों में बिजली का प्रवाह ना के बराबर ही होता है। रूट पर रेलवे ट्रैक के पूरे हिस्से में बिजली का प्रवाह नहीं होता है। उनके अनुसार केवल 20 फीसदी लाइन में ही करंट का फ्लो होता है। ये करंट का फ्लो भी सिग्नल और रेलवे स्टेशन के आसपास की पटरियों में ही होता है। लेकिन इसका वोल्टेज काफी कम होता है। इसलिए अगर कोई पटरी को छूता भी है तो उसे करंट महसूस नहीं होगा।
फ्लो के लिए हमेशा छोटा रास्ता चुनती है बिजली
भारतीय रेलवे पटरियों के साथ अर्थिंग डिवाइस भी लगाया जाता है। ये उस बिजली को ग्राउंड करता है जो पटरियों से गुजरता है। इसलिए पटरियों में बिजली रूकती नहीं है। आप विज्ञान के नियम के बारे में भी जानते होंगे कि बिजली अपने फ्लो के लिए हमेशा छोटे रास्ते को चुनता है। ऐसे में करंट पटरियों के साइड लगाने वाले बॉक्स से ही गुजर जाती है।