देवी-देवताओं के वाहन हमेशा पशु-पक्षी ही क्यों होते हैं ?
हिंदू धर्म के देवी-देवताओं के वाहनों की बात करें तो भोलेनाथ का नंदी, मां दुर्गा का शेर, भगवान विष्णु के गरुढ़, इंद्र का ऐरावत हाथी, मां सरस्वती का हंस तथा भगवान गणपति का वाहन मूषक, कार्तिकेय का वाहन मोर है। इस प्रकार देखा जाए तो हर देवी-देवता का वाहन कोई ना कोई पशु-पक्षी अवश्य है।
अब आप यह सोच रहे होंगे कि सर्वशक्तिमान देवी-देवताओं को आखिर पशु-पक्षियों से ही सवारी क्यों करनी पड़ी। जबकि वह अपनी शक्ति से किसी भी क्षण कहीं भी जा सकते हैं। दोस्तों, देवी-देवताओं को पशु-पक्षियों से जोड़ने के पीछे कई आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और व्यवहारिक कारण हैं।
बतौर उदाहरण भगवान शंकर का दूसरा नाम भोलेनाथ भी है। लेकिन वही शिव जब क्रोधित हो जाते हैं तब किसी का भी संहार कर सकते हैं। ठीक उसी प्रकार उनका वाहन नंदी भी सीधा-साधा होता है। लेकिन क्रोध में आने पर वह किसी के काबू में नहीं आता है।
मां दुर्गा तेज, शक्ति और सामर्थ्य की प्रतीक हैं। उनकी सवारी शेर है। मां दुर्गा की तरह शेर भी शक्ति का प्रतीक माना गया है। भगवान गणपति का वाहन मूषक है। जिस प्रकार से भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा गया है, उसी प्रकार मूषक भी अपने उपर आने वाली समस्यों को धीेरे-धीरे कुतर डालता है।
इसके पीछे दूसरा मुख्य कारण यह भी है कि पशु-पक्षियों को भगवान से जोड़े के कारण उनके खिलाफ हिंसा नहीं हो सकती है। शायद अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो अब तक पृथ्वी से इनका अस्तित्व भी खत्म हो चुका होता। हर देवी-देवता से किसी ना किसी पशु-पक्षी को जोड़कर भारतीय मनीषियों ने प्रकृति और जीवों की रक्षा संदेश दिया है।