इतिहासकार अबुल फजल की आईने अकबरी के अनुसार, अकबर कहता है कि अगर पहले मुझमें बुद्धि होती, तो मैं अपने राज्य की किसी स्त्री को जबरन हरम में नहीं डालता। अब आप सोच रहे होंगे कि अकबर को आखिर किस गलती का अहसास हुआ था, जो उसने ऐसी बात कही थी। बता दें कि बादशाह अकबर के अधीन पूरा देश गुलाम हो चुका था। लेकिन विजित राज्यों से सुंदर महिलाएं लूटने का सिलसिला बंद हो चुका था। मुस्लिमों के साथ-साथ हिंदुओं महिलाओं ने भी पर्दा प्रथा अपना लिया था। इस वजह से बुर्के और घूंघट में छुपी खूबसूरत स्त्रियों को ढूंढ़ निकालना इतना आसान काम नहीं रह गया था।
अकबर के सिपहसालारों और दरबारियों के जनानखाने हिंदु और मुस्लिम महिलाओं से भरे पड़े थे। दरबारियों की बेटियां भी जवान हो रही थीं। इसलिए अकबर ने दरबारियों और प्रजा की सुंदर महिलाओं और युवतियों को खोजने का एक आसान उपाय निकाला। उसने आगरा में मीना बाजार लगाने की परंपरा डाली। आगरे के किले के सामने मैदान में मीना बाजार लगना शुरू हुआ। शुक्रवार के दिन मीना बाजार लगा करता था। इस दिन जहां मुस्लिम वर्ग पांच वक्त की नमाज में व्यस्त रहता था।

शुक्रवार को मीना बाजार के आस पास भी आना पुरूषों के लिए वर्जित था। मीना बाजार में महिलाएं ही दुकानदार थीं और महिलाएं ही ग्राहक। अकबर का आदेश था कि प्रत्येक दरबारी अपनी महिलाओं को दुकान लगाने के लिए मीना बाजार भेजे। इस आदेश की अवहेलना करने वाले प्रत्येक दरबारी और सेठ को अकबर के गुस्से का शिकार बनना पड़ता था। मीना बाजार जमने लगा। महिलाएं बिना पर्दे के बेखौफ होकर मीना बाजार में सामानों की खरीद फरोख्त के लिए घूमने लगी थीं। अकबर के हरम में रहने वाली कूटनियां और स्वयं अकबर भी स्त्री वेश में बाजार में घूमने लगे। हर सप्ताह किसी ना किसी दरबारी अथवा सेठ की सुंदर म​हिला पर गाज गिरती थी। जो सुंदर महिला अकबर की नजरों पर चढ़ जाती थीं, उसे अकबर के किले में पहुंचा दिया जाता था। पति के प्राणों का मोह, लोकलाज का भय इज्जत लुट चुकी महिलाओं का मुंह बंद कर देता। अस्मतें लुटती रहीं और मीना बाजार चलता रहा। इस प्रकार कई दरबारियों की कन्याएं और विवाहिताएं आगरे के किले में लाई गईं।
मीना बाजार का यह नियम था कि दुकान लगाने वाली महिलाओं और बाजार में खरीद के आने वाली महिलाओं के नाम और वंश लिखे जाते थे।

अकबर ने एक दिन देखा कि बीकानेर के राव कल्याणमल की बूढ़ी पत्नी नाममात्र के लिए दुकान लगाकर बैठती है, लेकिन परिवार की सुंदर जवान औरतें कभी मीना बाजार में नहीं आती।
वैसे कल्याणमल ने अपने प्राणों के भय से अपनी कन्या अकबर से ब्याह दी थी। बावजूद इसके अकबर ने कल्याणमल को संदेशा भेजा कि आपके परिवार की महिलाएं एक बार भी मीना बाजार में खरीदी के लिए नहीं आई हैं, यह ठीक नहीं है।
विवश कल्याणमल ने अपनी पत्नी से सलाह मशविरा किया और बड़े बेटे रायसिंह की पत्नी को दासियों के साथ मीना बाजार में भेजा। अनिष्ट की आशंका से रायसिंह की पत्नी कांप उठी। रोती सिसकती हुई जेठानी ने अपनी देवरानी किरण कंवर की तरफ देखा। जी हां, सिसौदिया के रणबांकुरे शक्ति की बेटी किरण कंवर। हिन्दू सूर्य नर-नाहर महाराणा प्रताप की भतीजी और हिन्दू गौरव पृथ्वीसिंह राठौर की पत्नी।

जेठानी ने कहा कि कंवरानी सा, आज कौन बचाएगा मुझे। आज मेरे जीवन का अंतिम दिन आ गया है। तब किरण कंवर ने कहा— ठहरो भाभी सा. अभी आती हूं। यह कहते हुए किरण कंवर महल में गईं और तीखी कटारी अपने जूड़े में खोंसती हुई बाहर आ गईं। आप अकेले नहीं मरेंगी भाभी सा! यह सिसोदिया की बेटी भी आपके साथ ही मरेगी। मीना बाजार में जैसे ही इन दोनों महिलाओं का नाम लिखवाया गया। पृथ्वीसिंह की पत्नी किरण कुंवर का नाम सुनते ही अकबर खुशी से उछल पड़ा। उसने सोचा कि जिस सिसोदिया परिवार का डोला कभी बादशाह के हरम में नहीं आया, आज उसी सिसोदिया की बेटी मीना बाजार में आ चुकी है। जब अकबर ने किरण कंवर को दूर से देखा तो उनके रूप को देखता ही रह गया। अकबर ने किरण कंवर को मीना बाजार के तंबू से किले में लाने की जुगत भिड़ाई। एक मुगल दासी ने आकर कहा कि बीकानेर की बेगम साहिबा अपनी भाभियों को याद कर रही हैं। किरण कंवर ने अपनी जेठानी से कहा कि भाभी सा! आप निश्चिंत रहें। मैं जौहर और शस्त्र से खेलने परिवार की बेटीं हूं। यह तुर्क मेरे जीवित रहते इस शरीर को नहीं पा सकेगा।
किले का द्वार पारकर किरण कंवर जैसे ही सुनसान मार्ग पहुंची। पास के द्वार से निकलकर अकबर ने रास्ता रोक लिया। अकबर शराब के नशे में था। अब किरण कंवर के सामने तीन रास्ते बचे थे। सम्मानपूर्ण मृत्यु, चुपचाप इज्जत लुटवा लेना या फिर कटार से अकबर को खत्म कर देना।
किरण कंवर ने तुरंत निर्णय लिया और अकबर पर भूखी शेरनी की तरह टूट पड़ी। अकबर कुछ सोचता इससे पहले वीरांगना किरण ने उसे भूमि पर पटक दिया और छाती पर जा बैठी और अकबर के मुंह पर घूंसों का प्रहार करने लगी। अकबर का नशा काफूर हो गया। साक्षात मौत अकबर के सामने नाचने लगी। अब तथाकथित महावीर महान अकबर दोनों हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगा। अकबर ने कहा कि ओ देवी! मुझे माफ करो, मेरी जान बख्श दो, मैं तुम्हारी गाय हूं। मुझसे भारी गलती हो गई, अब कभी ऐसे पाप कर्म नहीं करूंगा।
किरण कंवर ने सोचा कि अकबर तो मर जाएगा, लेकिन प्रतिशोध की ज्वाला में जेल में बंद मेरा पति मारे जाएंगे। मुगल तख्त खाली नहीं रहेगा, शहजादा सलीम बादशाह बन जाएगा। बदले की आग में मुसलमान सैनिक आगरा के हिंदुओं को तबाह कर देंगे। इसके बाद किरण कंवर ने अकबर के गले पर कटार रख दी और कहा मैं तुझे माफ कर सकती हूं। एक शर्त है कि आज के बाद यहां कभी मीना बाजार नहीं लगाएगा। इसके बाद दोबारा कभी अकबर ने आगरा में मीना बाजार नहीं लगवाया।

Related News