जब लाखों रुपयों में बिक जाते थे ये आवारा सांड ...
इंटरनेट डेस्क। बैलगाड़ी का भी एक समय था जब इसका उपयोग बहुत अधिक किया जाता था। भारत के हर गाँव की शान हुआ करती थी बैलगाड़ी। माल ढोने या लाने ले जाने के लिए सबसे उपयुक्त साधन अगर कभी हुआ करता था, तो वो थी हमारी बैलगाड़ी। लेकिन ना जाने कहा, अब लुप्त होती जा रही हैं हमारी बैलगाड़ी। जिस बैलगाड़ी को वर्तमान पीढ़ियां महसूस नहीं कर पा रही हैं उस बैलगाड़ी की सवारी करने का सौभाग्य हमे प्राप्त हुआ था।
आज की तारीख में बैलगाड़ी की सवारी एक सपने जैसा ही हो चुकी हैं। एक महत्वपूर्ण बात पर फोकस करे आखिरकार बैलगाड़ी अगर गई तो कहाँ गई ? बैल जानते हो साथियों ! सांड का नाम तो सुना ही होगा, बहुतायत में आपको आज सांड घूमते मिल जाएंगे। कभी शहर या गाँव की सब्जी मंडी में जाइएगा,संभवतया आपको ये दिख जाएंगे। लेकिन कभी सोचा हैं ये सांड आवारा क्यों घूम रहे हैं।
पेट्रोल और डीजल की गाड़ियां फूंकने के समय की पीढ़ी बैलगाड़ी की महत्वत्ता को नहीं समझ पाएगी।प्रदूषण और कई सड़क दुर्घटनाओं से बचाव के लिए प्रशासन को आवारा सांड अथवा बैलों का सरंक्षण करना चाहिए। जी ये सांड थे जब इनका भी एक समय हुआ करता था। कभी हज़ारों लाखों की कीमत में बिकने वाले सांड आज बेहद ख़राब स्तिथि से गुजर रहे हैं। केंद्र एवं राज्य सरकारों से निवेदन हैं इनके सरंक्षण पर विशेष ध्यान दे।
एक बार फिर बैलगाड़ियों को प्रचलन में लाकर प्रदूषण और सड़क दुर्घटनाओं पर काफी हद तक लगाम लगाई जा सकेगी।