क्या हुआ था जब अपने ही भक्त हनुमान से हार गए थे श्रीराम?
कहा जाता है कि इस पूरी दुनिया में श्रीराम भगवान का हनुमान जी जैसा कोई भक्त नहीं है और ये बात सच भी है क्योंकि हनुमान जी ने रामायण काल में हर कदम पर भगवान राम का साथ दिया था और अपने अपार बल से उन्हें हर मुश्किल से बाहर निकाला था।
बहुत कम लोग जानते हैं कि एक बार भगवान राम को अपने ही परम भक्त हनुमान से युद्ध करना पड़ा था। आज हम आपको रामायण काल की इसी अनोखी घटना के बारे में बताने जा रहे हैं।
उत्तर रामायण के अनुसार अश्वमेघ यज्ञ पूर्ण होने के बाद श्रीराम भगवान ने बड़ी सभा का आयोजन किया था और इसमें सभी देवी-देवताओं, ऋषि-मुनि, किन्नरों और यक्षों एवं राजाओं को आमंत्रित किया था। इस सभा में आए नारद मुनि के भडकाने पर एक राजन ने पूरी सभा के सामने विश्वामित्र को छोड़कर सभी को प्रणाम किया। इस बात पर ऋषि विश्वामित्र नाराज़ हो गए और उन्होने श्रीराम से कहा कि अगर सूर्यास्त होने से पहले उस राजा को मृत्यु दंड नहीं दिया गया तो वो स्वयं राम को श्राप दे देंगें।
इस पर श्रीराम भगवान ने राजा को मृत्युदंड देने का प्रण लिया और ये खबर जब उस राजा तक पहुंची तो वो भागा-भागा हनुमान जी की माता अंजनी की शरण में चला गया। उसने मां अंजनी को पूरी बात नहीं बताई और उनसे अपनी रक्षा का वचन मांग लिया।
तब माता अंजनी ने हनुमान की को राजा की प्राण रक्षा का आदेश दिया और इस तरह इन दोनों के बीच ही युद्ध की रेखा खींच गई। हनुमान जी को ज्ञात नहीं था कि उन्हें राजा की रक्षा स्वयं अपने प्रभु से करनी है और उन्होंने अनजाने में भगवान राम की ही शपथ ले ली कि कोई भी राजा का बाल भी बांका नहीं कर पाएगा। जब हनुमान जी को सत्य का ज्ञात हुआ तो वो धर्म संकट में पड़ गए कि राजा के प्राण कैसे बचाएं और मां का वचन कैसे निभाएं।
योजना से किया काम
ऐसे में हनुमान जी को एक योजना सूझी। उन्होंने राजा को सरयू नदी के तट पर जाकर राम का नाम जपने के लिए कहा और वो स्वयं सूक्ष्म रूप धारण कर राजा के पीछे छिप गए। जब राजा की खोज करते हुए श्रीराम भगवान सरयू नदी के तट तक पहुंचे तो उन्होंने देखा कि राजन राम नाम जप रहा है।
तब प्रभु ने सोचा कि मैं अपने ही भक्त के प्राण कैसे ले सकता हूं। तब श्रीराम ने वापिस लौटकर ऋषि विश्वामित्र को अपनी दुविधा बताई किंतु विश्वामित्र अपनी बात पर अडिग रहे। इस पर श्रीराम भगवान वापिस सरयू नदी के तट पर गए। ऐसे में श्रीराम भगवान को हनुमान जी की याद आ रही थी।
जब सरयू नदी के तट पर श्रीराम ने बाण निकाला तो हनुमान जी कहने पर राजा राम नाम का जाप करने लगा। श्री राम फिर दुविधा में पड़ गए। राम फिर लौट गए और विश्वामित्र के कहने पर वापिस सरयू तट आए। इस बार राजा जय जय सीयाराम जय हनुमान गाने लगा।
इस दुविधा में ऋषि वशिष्ठ ने ऋषि विश्वामित्र को सलाह दी कि वो इस तरह राम को संकट में ना डालें, वो अपने भक्त का वध नहीं कर सकते हैं। तब विश्वामित्र जी ने श्रीराम को अपने वचन से मुक्त कर दिया।