इंटरनेट डेस्क। हिन्दू धर्म के सर्वोच्च देवताओं में शामिल भगवान शिव को महादेव, भोलेनाथ, शंकर, शम्भू, महाकाल और नीलकंठ जैसे कई नामों से जानते है। अन्य देवी देवताओं के विपरीत शिव जी के इन नामों के पीछे कोई न कोई रहस्य जुड़ा हुआ है। इसी तरह से भगवान शिव का नाम नीलकंठ होने के पीछे भी एक रहस्य है।

अमृत की खोज में, देवता और राक्षस समुद्र मंथन में लगे थे। दोनों का मानना था कि इस अमृत को पीकर वे अमर हो जाएंगे। इस मंथन में अच्छी और बुरी दोनों तरह की चीज़ें बाहर आ रही थी। इस समुद्र मंथन के दौरान 'हलाहल' नाम का विष बाहर आया। असुर और देवता दोनों ही इस विष को लेने के लिए तैयार नहीं थे और यह विष इतना खतरनाक था कि इसकी एक बूँद पृथ्वी पर तबाही मचा सकती थी।

जब देवताओं और असुर दोनों को पता चला कि भगवान शिव इस विष का पान कर सकते है तो दोनों ने ही इसके लिए शिव जी प्रार्थना की। शिवजी को अपने भक्तों की बात आसानी से मानने के लिए जाना जाता है। भोलेनाथ ने उनकी यह बात भी मान ली और यह विष पीने के लिए तैयार हो गए।

इस विष के खतरनाक असर से शिवजी को बचाने के लिए माँ पार्वती ने अपने हाथों से शिव के गले को पकड़ उस जहर को उनके गले में ही रोक दिया जिससे उनका गला नीला हो गया। तभी से शिव जी को 'नीलकंठ' नाम दिया गया।

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