इंसान का हौंसला अगर मजबूत हो तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं है और ऐसा ही साबित कर दिखाया है आगरा में रहने वाली रंजना यादव ने। उन्होंने मोतियों की खेती करना शुरू किया और पहली ही बारी में इसमें कामयाब भी हुई। उन्होंने प्रयोग के तौर पर ये काम करना शुरू किया था जिसमे उन्हें कामयाबी भी मिली।

मोती जो कि समुद्र में पैदा होते हैं, रंजना ने खुद इनकी खेती की। सबसे पहले एक ड्रम में इन्होंने प्रयोग के तौर पर मोती की खेती की थी। जब उस ड्रम में 7-8 मोती सच में पैदा हो गए तो रंजना यादव के हौंसलों को और मजबूती मिली।

अब रंजना 14X14 के आकार के एक तालाब में मोती की खेती कर रही हैं। इसमें उन्होंने खुद 2 हज़ार सीपियां डाली हैं। नवंबर तक उन्हें इसमें मोती मिल जाएंगे।

रंजना यादव डॉक्टर भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी से स्कूल ऑफ लाइफ साइंस विषय में Msc कर चुकी हैं। वहां ही उन्हें पर्ल फार्मिंग की जानकारी मिली और इस ओर उन्होंने कदम बढ़ाया तो वे कामयाब भी हो गई।

रंजना के अनुसार मोती की खेती मानवीय प्रयत्नों से होती है, लेकिन नेचुरली जो मोती सागर में पैदा होते हैं वे डिमांड में ज्यादा होते हैं।

इस तरह बनता है इनके तालाब में मोती
जब समुद्र में मोती पैदा होते हैं तोसीप के अंदर कीट और रेत पहुंचने से प्राकृतिक रूप से इसका निर्माण हो जाता है और कैल्शियम की परत इसे चमकदार बनाती है। लेकिन पर्ल फार्मिंग के दौरान सीपियों के भीतर एक बीड डाला जाता है। इसे न्यूक्लियर भी कहते हैं। ये 4-6 व्यास का होता है और जब ये बनकर तैयार हो जाता है तो इसपर पोलिश की जाती है।

बहुत ज्यादा करनी होती है देखभाल
सीपियों के भीतर एक बीड जाने से पहले और बाद में कई साड़ी जरूरी चीजों का ध्यान रखना होता है और प्रक्रियाएं करनी होती है। इसमें कई दवाएं डाली जाती है और सीपियों में न्यूक्लियर को चारा भी डाला जाता है। इनका शुरू में काफी ध्यान रखना पड़ता है। तालाब में ऑक्सीजन की सप्लाई का इंतज़ाम करना, बीमार सीपियों को दवा देना औऱ मरी हुई सीपियों को निकालना आदि सभी काम काफी ध्यान से करने पड़ते हैं।

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