लड्डू का नाम सुनकर भला किसके मुह में पानी न आ जाए। ऐसे ही लड्डुओं का लालच अब डेंगू के लार्वा का नाश करने में काम आएगा। सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन मलेरिया विभाग एक बार फिर से पुरानी तकनीक को अपनी कार्रवाई का हिस्सा बना रहा है। बस, अंतर सिर्फ इतना है कि ये लड्डू जहरीले होंगे जो सिर्फ मच्छरों के लार्वा को मारने के काम ही आएंगे।


मैनपुरी जिले में छोटे-बडे़ मिलाकर लगभग पांच सैकड़ा ऐसे स्थान हैं जिनमें जलभराव है। कई ऐसे भी हैं जहां एक बड़ा हिस्सा जलभराव से ग्रसित होने की वजह से वहां सफाई कराना और दवा का छिड़काव कराना मुश्किल होता है। ऐसे स्थानों पर मच्छर के लार्वा को मारने के लिए मलेरिया विभाग लड्डुओं की मदद लेगा। मैनपुरी जिला मलेरिया अधिकारी एसएन सिंह का कहना है कि मिट्टी में लार्वा नाशक टेमीफोस और बीटीआइ दवा को मिलाकर गीला पेस्ट बनाया जाएगा। इस पेस्ट से ही लड्डू बनाकर उन्हें सुखाया जाएगा। सूखने के बाद इन लड्डुओं को जलभराव वाले क्षेत्रों में गहराई में फेंका जाएगा। जैसे-जैसे मिट्टी घुलेगी, इनमें मिली दवा पानी की ऊपरी सतह पर आकर एक पर्त बनाने लगेगी। यह पर्त जब तक पानी की ऊपरी सतह पर रहेगी, डेंगू का लार्वा इस दवा के असर से मरता रहेगा।जिला मलेरिया अधिकारी का कहना है कि टेमीफोस के लड्डुओं को गहरे पानी में फेंका जाएगा जबकि बीटीआइ दवा को तालाबों और जलभराव वाले स्थानों में किनारों पर डाला जाएगा। किनारों पर ही लार्वा सबसे ज्यादा होता है। यह दवा टेमीफोस से ज्यादा असरदार है। इस दवा में साल भर तक मच्छरों के लार्वा को मारने की क्षमता है।

2017-18 में संसारपुर में बुखार का प्रकोप हुआ था। उस समय जलभराव के बीच लार्वा का खात्मा करने के लिए टेमीफोस के लड्डू बनाकर पानी में फेंके गए थे। असर देखने को मिला था। लार्वा तेजी से खत्म हुए थे।मलेरिया इंस्पेक्टर विवेक राजपूत का कहना है कि टेमीफोस सिर्फ मच्छरों के लार्वा को ही मारती है। इसका दूसरे जलचरों पर किसी भी प्रकार का जहरीला प्रभाव नहीं पड़ता है। मवेशी भी उन तालाबों का पानी पी सकते हैं, जहां इस दवा का इस्तेमाल किया गया है।

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