न्यूज़ डेस्क। हमारी वैदिक संस्कृती में भगवान विष्णु को जगत का पालनहार कहा गया है पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु निराकार परब्रह्म का रुप माना जाता है वह ही पूरे अखिल ब्रह्माण के पालनहार है इसी कारण उनका सभी देवताओं में भगवान विष्णु को सबसे उंचा दर्जा प्राप्त है। लेकिन आज हम आपको भगवान विष्णु की एक कथा बताते जिसे जानकर आपको पता चल जाएगा की भगवान विष्णु को त्रेतायुग में पृथ्वी पर अवतार लेने की जरुरत आखिर क्यों पड़ गयी तो चलिए जानते है...

एस समय की बात है कि नारद मुनि भगवान विष्णु के पास उनसे मिलने झीर सागर पहुंचे और जहां पर उन्होंने भगवान विष्णु से कहा की पूरे जगत में वही आपके सबसे बड़े भक्त हैं नारद मुनी की इस बात को सुनकर भगवान हंस गए और कुछ नहीं बोले लेकिन भगवान को लगा की नारद मुनी को अंहकार आ गया इसका नाश करना पड़ेगा।

तब भगवान विष्णु ने एक लीला रची जब नारद मुनी आकाश में भ्रमण कर रहे थे तभी उनकी नजर एक कन्या पर पड़ी जिस पर वह मोहित हो गए और उनके मन में विवाह करने की इच्छा जाग्रत हो गई जिसके बाद नारद मुनि भगवान विष्णु के पास गए और उनसे कहने लगे की मुझे हरि के समान स्वरुप प्रदान करें।

भगवान विष्णु नारद मुनी की अहंकार को तोड़ने के लिए नारद मुनी का वरदान दे दिया इसके बाद नारद मुनि विवाह की इच्छा से उस कन्या के स्वयंवर में पहुंचे लेकिन नारद मुनी चेहरा बंदर के समान हो गया था इस कारण कन्या ने उनकी तरफ नहीं देखा तो नारद मुनी इस बात से निराश हो गए इसके बाद जब नारद मुनी को पता चला की उनका चेहरा बंदर का हो गया है।

तो नारद मुनी ने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया कि आपको धरती पर अवतार लेना होगा और देवी लक्ष्मी से विरह का कष्ट भोगना होगा। इसी कारण भगवान विष्णु को राम अवतार में सीता जी से विरह का दुख भोगना पड़ा था। यही कारण हैं की भगवान विष्णू को धरती पर अवतार लेना पड़ा था।

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