पूरे विश्व में कई जाति और समुदाय के लोग रहते है जो सदियों से अपनी ख़ास परम्परा और संस्कृति का पालन करते आ रहे है. लेकिन इनमे कुछ समुदाय ऐसे है जो बाकी दुनिया से आज भी अनजान है और इनके रहन-सहन और तौर-तरीके आज भी हमारी समझ से परे है. हालाँकि वे जिस तरह के वातावरण में रहते है उसके हिसाब उनके तौर-तरीके सही और सटीक होते है.

आज हम आपको ऐसे ही एक समुदाय से मिलवाना चाहते है जो आपको गूगल पर भी खोजने पर नहीं मिलेगा. जी हाँ अमेज़न के घने वर्षावनों में एक समुदाय रहता है जो जिसका बाकी दुनिया से कोई लेना देना नहीं है. इस समुदाय का नाम यानोमामी समुदाय है यह एक आदिवासी समुदाय है.

इस आदिवासी यानोमामी समुदाय का रहने का तरीका काफ़ी अलग है. ये पूरे गाँव के लोग एक ही छत के नीचे रहते है. जिसमे चारों तरफ कमरे बने होते है और बीच में एक बड़ा सा आँगन होता है. रहने की इस खास व्यवस्था को शबोनो कहा जाता है. एक तरफ जहाँ हर आदिवासी समुदाय और कबीले में मरने वालों को लेकर अलग तरह के रिवाज और अनुष्ठान किये जाते है, वहीं इस यानोमामी समुदाय में अपने समुदाय के मरे हुए लोगों को खाने का रिवाज है.

इन लोगों के अनुसार मौत प्राकृतिक नहीं होती है. इनके अनुसार मौत तब आती है जब कोई दुश्मन किसी शैतान के साए को भेजकर किसी की जान ले लेता है तब उस व्यक्ति की मौत हो जाती है.

मृत शरीर को लेकर इस यानोमामी समुदाय का मानना है कि जितना वक्त शरीर को मिटटी में मिलने में लगेगा, उस मरे हुए व्यक्ति की आत्मा को उतने ही दिन कष्ट होगा. ये लोग मृत शरीर को पत्तियों से ढककर रख देते है. जब कुछ महीनों में शरीर में हड्डियाँ ही बचती है तो ये लोग उसे जलाते है और फिर उस हड्डी की राख को केले के सूप में मिक्स करते है, और पंगत में बैठे पूरे गाँव को बांटते है. जिसे सब लोग मिलकर खाते है.

इस रिवाज में पूरा सूप एक ही बार में खत्म करना होता. इन लोगों का मानना है कि जब तक शरीर पूरी तरह से नष्ट नहीं होगा तब तक उसकी दुनिया से विदाई नहीं होती है. इसलिए ये लोग हड्डी की राख को भी सूप में मिलाकर खा जाते है.

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