दोस्तों, आपको बता दें कि एक बार मां लक्ष्मी एक गृह स्वामी से रूठ गईं और बोलीं- मैं तुम्हारे घर से जा रही हूं, अब मेरी जगह नुकसान आ रहा है। इसके लिए तैयार हो जाओं, हां तुम्हें आखिरी भेंट जरूर देना चाहती हूं, इसलिए अपनी इच्छानुसार कुछ भी मांग लो।

गृह स्वामी बहुत समझदार था। उसने मां लक्ष्मी से विनती की कि घर में भले ही नुकसान आए, लेकिन मेरे परिवार में आपसी प्रेम बना रहे। इसके बाद मां लक्ष्मी तथास्तु कहकर वहां से चली गईं।

कुछ दिनों के बाद एक दिन शाम को गृह स्वामी की छोटी बहू खिचड़ी पका रही थी। उसने खिचड़ी में नमक डाला और दूसरा काम करने लगी। तभी दूसरे लड़के की पत्नी आई और बिना नमक चखे उसने भी खिचड़ी में नमक डाला और वहां चली गई। इसी प्रकार तीसरी और चौथी बहुएं आईं और नमक डालकर चली गईं। यहां तक कि सास ने भी ऐसा ही किया।

भोजन करने के लिए सबसे पहले गृह स्वामी आया और पहला निवाला मुंह में डालते ही उसे महसूस हुआ कि खिचड़ी में नमक बहुत ज्यादा है। इस प्रकार वह समझ गया कि घर में नुकसान आ चुका है। इसलिए उसने चुपचाप खिचड़ी खाई और वहां चला गया।

बड़ा बेटा खाना खाने के लिए आया और मुंह में पहला निवाला डालते ही उसने पूछा कि क्या पिताजी ने खाना खा लिया है। सभी ने एक स्वर में कहा कि हां, उन्होंने खाना खा लिया है।

इसके बाद बड़े बेटे ने कहा कि अगर पिता जी ने चुपचाप खाना खा लिया और कुछ नहीं बोले तो मैं भी चुपचाप खा लेता हूं। इसी तरह परिवार के सभी सदस्य एक-एक कर आए और चुपचाप खाना खाकर चले गए।

रात्रि में नुकसान हाथ जोड़कर गृह स्वामी के समक्ष खड़ा हो गया और बोला कि मैं इस घर से जा रहा हूं। गृहस्वामी ने कहा-क्यों? तब नुकसान ने क​हा कि आप सभी लोग एक सेर नमक खा गए लेकिन परिवार में झगड़ा तक नहीं हुआ। अब मेरा यहां कोई काम नहीं।

इससे शिक्षा मिलती है कि जहां कमजोरी, झगड़ा और हानि है वहीं नुकसान है। जहां प्रेम है, वहां सदा लक्ष्मी का वास है। इसलिए हर पल अपनों के बीच प्यार बांटते रहो। छोटे-बड़े की कद्र करो। बड़े-बुजुर्ग हमेशा बड़े ही रहेंगे, भले ही आप की कमाई उनकी कमाई से ज्यादा हो।

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