जानिए संत कबीर दास के दोहे अर्थ सहित
इंटरनेट डेस्क। दोस्तों आपको बता दे की जब भी हम दोहों के बारे में बात करते है तो संत कबीर का नाम सबसे पहले आता है, उनके साहित्य के योगदान को कभी भी नहीं भुलाया जा सकता, उनकी रचनाएँ, भजन, और दोहे बहुत प्रसिद्ध है। दोस्तों आज हम आपको कबीर के कुछ दोहों के बारे में बता रहे है जिसे पड़ने के बाद
1 . साईं इतना दीजिए, जा में कुटुंब समाए, मैं भी भूखा न रहूं, साधू न भूखा जाए।
दोस्तों आपको बता दे की इस दोहे में कबीर जी कहते हैं कि ए ईश्वर से सिर्फ उतना चाहते हैं जिससे उनके परिवार का खर्च चल जाए। वे कह रहे कि उतना मिल जाए कि वे खुद भी भूखें नहीं रहे और उनके दर पर आया कोई भी भिक्षुक भूखा नहीं जाए।
2 . जैसे तिल में तेल है, ज्यों चकमक में आग, तेरा साईं तुझ में है, तू जाग सके तो जाग।
दोस्तों आपको बता दे की इस दोहे में कबीर जी कहते हैं जिस तरीके से तिल में तेल होने और चकमक में आग होने के बाद दिखाई नहीं देता हैं वैसे ही हमें ईश्वर को खुद के भीतर देखने की जरुरत हैं, उसे बाहर खोजना निरर्थक हैं।
3. पोथि पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोए, ढाई आखर प्रेम के, पढ़ा सो पंडित होए।
दोस्तों आपको बता दे की इस दोहे में कबीर जी कहते हैं कि किताबें पढ़ कर दुनिया में कोई भी ज्ञानी ना बना हैं और ना ही बनेगा। वे कहते हैं सही मायने में जो प्रेम को जान गया है वही दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञानी है।