काशी के विद्वानों ने ली थी गोस्वामी तुलसीदास लिखित श्रीरामचरितमानस की परीक्षा
हिंदू धर्मशास्त्रों में श्रीरामचरितमानस का अपना विशेष स्थान है। गोस्वामी तुलसी ने अगहन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस की रचना संपूर्ण की थी। इस स्टोरी में हम आपको श्रीरामचरितमानस से जुड़ी कई ऐसी बातें बताने जा रहे हैं, जो बहुत कम लोग जानते हैं।
श्रीरामचरित मानस के मुताबिक, तुलसीदासजी को स्वप्न में भगवान शंकर ने आदेश दिया था कि तुम अपनी भाषा में महाकाव्य की रचना करो। जैसे ही तुलसीदासजी का सपना टूटा, तभी वहां भगवान शिव और पार्वती प्रकट हुए। उन्होंने कहा- तुम अयोध्या में जाकर अवधी में काव्य रचना करो, जो सामवेद की तरह फलवती होगी। भोलेनाथ की आज्ञा से तुलसीदासजी अयोध्या आ गए।
संवत् 1631 की सुबह तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारंभ की। यह महाकाव्य लिखने में 2 वर्ष, 7 महीने व 26 दिन लगे। इस प्रकार संवत् 1633 के अगहन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को इस ग्रंथ के सातों कांड पूर्ण हुए।
श्रीरामचरितमानस में वर्णित प्रसंग के अनुसार, एक बार काशी के विद्वानों ने श्रीरामचरितमानस की परीक्षा लेने की सोची। उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर में वेदों, धर्मशास्त्रों, तथा पुराणों के नीचे श्रीरामचरितमानस ग्रंथ रख दिया। इसके बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए।
सुबह जब मंदिर का दरवाजा खोला गया, तब सभी ने देखा कि श्रीरामचरितमानस वेदों के ऊपर रखा हुआ है। यह देखकर उपस्थित विद्वतजन बहुत लज्जित हुए। उन्होंने तुलसीदासजी से क्षमा याचना की तथा श्रीरामचरितमानस को सर्वप्रमुख ग्रंथ के रूप में स्वीकार किया।