होली भारत का एक बहुत ही लोकप्रिय त्योहार है, जो हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। होली दो दिवसीय त्योहार है, जिसकी शुरुआत होलिका पूजा और होलिका दहन से होती है। होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा को किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन होलिका दहन की अग्नि नकारात्मक ऊर्जाओं को नष्ट कर देती है। इस अग्नि में गाय के गोबर के उपले जलाने की प्रथा है क्योंकि इस दिन गाय के गोबर के उपले जलाने का विशेष महत्व माना जाता है।

गाय के गोबर से बने उपले जलाने का धार्मिक महत्व:

हिंदू धर्म में गाय को अत्यधिक पूजनीय माना जाता है और ऐसा माना जाता है कि गाय में सभी देवताओं का वास होता है। इसलिए, ऐसा माना जाता है कि गाय के गोबर के उपले या उपले जलाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। इसी कारण गाय के गोबर से बने उपलों का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों में भी किया जाता है।

होलिका दहन के लिए गाय के गोबर से बड़े-बड़े कंडे बनाए जाते हैं. गाय के गोबर से छोटे-छोटे गोल गोले बनाकर बीच में छेद करके धूप में सुखाया जाता है और इनसे कई मालाएं बनाई जाती हैं। फिर इन मालाओं को होलिका की अग्नि में जला दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन्हें जलाने से घर से परेशानियां दूर हो जाती हैं।

गाय के गोबर से बने उपले जलाने का वैज्ञानिक महत्व:
होली के त्यौहार के दौरान, मौसम आमतौर पर ठंडा होता है, और गर्मी के मौसम की शुरुआत आसन्न होती है। इस समय ऐसा वातावरण होता है जिसमें विभिन्न प्रकार के बैक्टीरिया पनपने लगते हैं। ये बैक्टीरिया हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं। गाय के गोबर में ऐसे तत्व मौजूद होते हैं जो पर्यावरण को शुद्ध करते हैं। इसलिए, गाय के गोबर के उपले जलाने से हानिकारक बैक्टीरिया मर जाते हैं, जिससे वातावरण शुद्ध हो जाता है।

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