हर साल पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान पितर धरती पर आते हैं और परिवार के द्वारा किए गए श्राद से तृप्त होते हैं। गरुड़ पुराण में भी श्राद्ध को काफी महत्पूर्ण बताया गया है लेकिन इसके कुछ नियम भी बताए गए हैं। जिस से श्राद्ध सार्थक हो सके।

गरुड़ पुराण के अनुसार नियम और विधि​ विधान के साथ श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होते हैं। श्राद्ध करने से आपकी कई मनोकामना पूरी हो सकती है और घर-परिवार, व्यवसाय व आजीविका में आ रहीं रुकावटें दूर होती हैं। इसलिए आज हम आपको श्राद्ध के कुछ नियमों के बारे में बताने जा रहे हैं।

समय का रखें ध्यान
अगर आ[आप श्राद्ध कर रहे हैं तो हम आपको बता दें कि सूर्योदय से लेकर दिन के 12 बजकर 24 मिनट तक का समय सबसे श्रेष्ठ माना गया है। आपको जल्दी उठ कर स्नान करना चाहिए आदि करके श्राद्ध के लिए ब्राह्मण से तर्पण करा लें। फिर इसके बाद आपको देव स्थान और पितृ स्थान को गाय के गोबर से लीप लेना है और वहां गंगाजल का छिड़काव करना चाहिए। घर की महिलाएं शुद्धता के साथ भोजन समय से तैयार करें।

5 जगह भोजन निकालें
ब्राह्मण या जिसे भी श्राद्ध का भोजन आप कराने वाले हैं उसे एक पत्ते पर 5 जगह निकालें। इसमें पहला हिस्सा गाय का, दूसरा कुत्ते, तीसरा कौए, चौथा देवता और पांचवां चींटी का होता है। फिर दक्षिणाभिमुख होकर कुश, तिल और जल लेकर संकल्प करें और इसके बाद आपको ब्राह्मण को भोजन करवाना चाहिए। खुद ही भोजन परोसें और ब्राह्मण के भोजन करने के बाद उसकी थाली उठाएं।

भोजन के दौरान मौन रहें
श्राद्ध का भोजन एकदम प्रसन्न मन से करवाना चाहिए। इस दौरान एक दम मौन रहें और ब्राह्मण से ज्यादा बातचीत न करें। भोजन करवाने के बाद उनके पैर छूएं और यथा सामर्थ्य दक्षिणा दें।

इस बात का रहे ध्यान
श्राद्ध के समय आपको सफेद फूलों का ही उपयोग करना चाहिए। बिल्वपत्र, नागकेशर, मालती, चंपा, कनेर, कचनार एवं लाल रंग के पुष्प का इस्तेमाल इस दौरान वर्जित बताया गया है। आपको दूध, मधु, गंगाजल, वस्त्र, तिल, कुश का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा अभिजित मुहूर्त का ध्यान रखें।

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