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दोस्तों, आपको जानकारीे ​के लिए बता दें कि पितृ पक्ष के दौरान श्राद्धकर्म करने अथवा नहीं करने को लेकर अधिकांश लोगों में मतभेद हैं। इस स्टोरी में हम आपको बताने जा रहे हैं कि वेद में पितृ पक्ष के दौरान श्राद्धकर्म करने की अनुमति दी गई है अ​थवा नहीं।

वेदों के अनुसार, ब्रह्म यज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, वैश्वदेव यज्ञ और अतिथि यज्ञ नामक 5 यज्ञों के बारे में विस्तार से बताया गया है। पितृयज्ञ को ही पुराण में श्राद्ध कर्म की संज्ञा दी गई है। वेद पितरों की बात तो करते हैं लेकिन उनके श्राद्धकर्म करने को लेकर अस्पष्टता है।

यजुर्वेद वर्णन मिलता है कि- हे अग्नि! हमारे श्रेष्ठ सनातन यज्ञ को संपन्न करने वाले पितरों ने जैसे देहांत होने पर श्रेष्ठ ऐश्वर्य वाले स्वर्ग को प्राप्त किया है, वैसे ही यज्ञों में इन ऋचाओं का पाठ करते हुए और समस्त साधनों से यज्ञ करते हुए हम भी उसी ऐश्वर्यवान स्वर्ग को प्राप्त करें।

विद्वानों के अनुसार, वेद में अधिकतर जगह सत्य और श्रद्धा से किए गए कर्म श्राद्ध और जिस कर्म से माता-पिता और आचार्य तृप्त हो, वह तर्पण है। वेदों में श्राद्ध को पितृयज्ञ कहा गया है। यह श्राद्ध-तर्पण हमारे पूर्वजों, माता-पिता और आचार्य के प्रति सम्मान का भाव है। यह पितृयज्ञ संपन्न होता है संतानोत्पत्ति और संतान की सही शिक्षा-दीक्षा से। इसी से पितृ ऋण भी चुकता होता है।

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