दोस्तों, ज्यादातर लोग जानते हैं कि लंका के राजा रावण को केवल भगवान श्रीराम ने पराजित किया था। जबकि सच्चाई यह है कि इससे पहले वह 4 लोगों से युद्ध हार चुका था। मर्यादा पुरूषोत्तम राम से पहले भगवान शिव, राजा बलि, बालि और सहस्त्रबाहु अर्जुन से हुए युद्ध में रावण मौत के मुंह से वापस लौटा था। इस स्टोरी में हम आपको बताने जा रहे हैं कि लंकाधिपति रावण इन युद्धों में कब और कैसे हारा था।

सहस्त्रबाहु से रावण की हार
एक क्षत्रिय राजा जिसका नाम सहस्त्रबाहु अर्जुन था। कहा जाता है कि राजा सहस्त्रबाहु के हजार हा​थ थे। एक बार जब रावण अपने शक्ति के मद में चूर होकर सहस्त्रबाहु से युद्ध करने पहुंच गया। तब सहस्त्रबाहु ने अपने हजार हाथों से नर्मदा नदी के बहाव को रोक दिया था। इसके थोड़ी देर बाद उसने नर्मदा नदी के पानी को छोड़ दिया, जिससे रावण की पूरी सेना पानी में ही बह गई। पराजय के बाद भी जब रावण सहस्त्रबाहु से युद्ध करने पहुंचा तब उसे सहस्त्रबाहु ने बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया। जब यह बात उसके दादा महर्षि पुलस्त्य को पता चली तो उन्होंने सहस्त्रबाहु से कहकर रावण को कैदमुक्त करवा दिया।

बालि से रावण की हार
वानरों के राजा महाबलि बालि को रावण युद्ध करने के लिए उस वक्त ललकारने लगा जब वह पूजा कर रहा था। बालि की पूजा में बाधा उत्पन्न हो रही थी। इसलिए उसने रावण को अपनी भुजाओं में दबोचकर चार समुद्रों की परिक्रमा की थी। कहते हैं कि सूर्योदय से पूर्व ही बालि प्रतिदिन सुबह चारों समुद्रों की परिक्रमा कर लेता था। इस प्रकार सूर्य पूजा के बाद जब बालि ने रावण को अपनी पकड़ से मुक्त कर दिया तब उसने बालि से मित्रता कर ली।

राजा बलि के महल में रावण की पिटाई
एक बार रावण दैत्यराज बलि से युद्ध करने के लिए पाताल लोक पहुंच गया था। जैसे ही रावण ने राजा बलि को युद्ध करने की चुनौती दी, तभी महल में खेल रहे बच्चों ने उसे पकड़कर घोड़ो के अस्तबल में बांध दिया तथा जमकर पिटाई की। राजा बलि के कहने पर बच्चों ने रावण को छोड़ दिया।

भगवान शिव से हुए युद्ध में किसी तरह बचाई अपनी जान
लंका का राजा रावण अपनी शक्ति के मद में इतना चूर था कि वह भगवान शंकर को युद्ध में पराजित करने के लिए कैलाश पर्वत पहुंच गया। उस समय भगवान शिव ध्यान में लीन थे। तभी रावण कैलाश पर्वत को उठाने लगा। शिवजी ने अपने अंगूठे से कैलाश पर्वत का भार बढ़ा दिया जिससे रावण का हाथ कैलाश पर्वत के नीचे ही दब गया। मौत को नजदीक आते देख वह उसी क्षण भगवान भोलेनाथ की आराधना करने लगा जिससे उसकी जान बच सकी। महादेव ने प्रसन्न होकर रावण को विश्वविजयी चंद्रहास तलवार दी।

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