Diwali 2021 : आखिर क्यों माता सीता ने अपने ही देवर लक्ष्मण को लिया था निगला, जानें कथा
रामायण के अधिकांश पहलुओं के बारे में हम जानते हैं। हम जानते हैं कि माता सीता का विवाह राम से हुआ था और उसके बाद उन्हें वनवास भी जाना पड़ा। वहां पर सीता का अपहरण हुआ और बाद में राम ने रावण का वध किया और सीता को बचाया। लेकिन आज हम आपको रामायण की एक ऐसी कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में आपको जानकारी नहीं होगी। एक किस्से के अनुसार माता सीता ने अपने ही देवर लक्ष्मण को निगल लिया था।
एक समय की बात है राम रावण का वध कर के भगवती सीता के साथ अवधपुरी वापस आ गए। अयोध्या को तब दुल्हन की तरह सजाया गया और उत्सव मनाया गया। उत्सव मनाया जा रहा था तभी सीता के मन में ये खयाल आया कि नवास जाने से पूर्व मां सरयु से वादा किया था कि अगर पुन: अपने पति और देवर के साथ सकुशल अवधपुरी वापस आऊंगी तो आपकी विधि से पूजा अर्चना करूंगी।
यह सोचकर सीता माता लक्ष्मण को साथ लेकर रात में सरयू नदी के तट पर आ गई। सरयू नदी की पूजा के बाद उन्होंने लक्ष्मण से नदी में जाने के लिए कहा। लक्ष्मण जी जल लाने के लिए घडा लेकर सरयू नदी में उतर गए। वे जल भरने वाले थे तभी-सरयू के जल से एक अघासुर नाम का राक्षस निकला जो लक्ष्मण जी को निगलना चाहता था। जब मां सीता ने ये दृश्य देखा तो लक्ष्मण को बचाने के लिए माता सीता ने अघासुर के निगलने से पहले स्वयं लक्ष्मण को निगल गई।
लक्ष्मण को निगलने के बाद सीता जी का सारा शरीर जल बनकर गल गया। यह दृश्य हनुमानजी देख रहे थे जो अद्रश्य रुप से सीता जी के साथ सरयू तट पर आए थे। उस तन रूपी जल को श्री हनुमान जी घड़े में भरकर भगवान श्री राम के सम्मुख लाए और सारी घटना कैसे घटी यह बात हनुमान जी ने श्री राम जी से बताई।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी हँसकर बोले- हे मारूति सुत सारे राक्षसों का वध मैंने कर दिया लेकिन ये राक्षस मेरे हाथों से मरने वाला नही है। इसे भगवान भोलेनाथ का वरदान प्राप्त है कि जब त्रेतायुग में सीता और लक्ष्मण का तन एक तत्व में बदल जायेगा तब इस राक्षस का वध होगा और वह तत्व रूद्रावतारी हनुमान के द्वारा अस्त्र रूप में प्रयुक्त किया जाये। सो हनुमान इस जल को तत्काल सरयु जल में अपने हाथों से प्रवाहित कर दो। इस जल के सरयु के जल में मिलने से अघासुर का वध हो जायेगा और सीता तथा लक्ष्मण पुन:अपने शरीर को प्राप्त कर सकेंगे।
हनुमान जी ने घडे के जल को अभिमंत्रित कर के सरयु जल में डाल दिया। घडे का जल ज्यों ही सरयु जल में मिला त्यों ही सरयु के जल में भयंकर ज्वाला जलने लगी उसी ज्वाला में अघासुर जलकर भस्म हो गया। इसके बाद सरयु माता ने पुन: सीता तथा लक्ष्मण को नव-जीवन प्रदान किया।