हिंदू धर्मशास्त्रों में यह वर्णित है कि अन्न की देवी मां अन्नपूर्णा का व्रत-अनुष्ठान करने से सुख, यश, कीर्ति तथा आयु में वृद्घि होती है। बता दें कि यह व्रत महिलाओं द्वारा विशेष रूप से किया जाता है। अन्नपूर्णा माता की पूजा में विशेष रूप से सुहाग सामग्रियों का अर्पण किया जाता है। श्रीविद्या में अन्नपूर्णा को अमृत स्वरुप कहा गया है-

श्री विद्यामृत पिठेशी सुधा श्रीमृतेश्वरी। अन्नपूर्णा विख्याता पंचैता: कामधेनव:।।

अर्थात जो मनुष्य थोड़े परिश्रम से ही अपने दुःख का अंत देखना चाहता है, वह जगमाता अन्नपूर्णा देवी को सर्वपरि मानकर उनका व्रत करें। ऐसा करने से मनुष्य का जीवन सुखमय बन जाता है।

पौराणिक मान्यतानुसार, एक बार भोलेनाथ की नगरी काशी में अन्न की कमी के कारण जनता त्राहि-त्राहि करने लगी। इस भयावह स्थिति से विचलित महादेव ने मां अन्नपूर्णा से भिक्षा ग्रहण वरदान प्राप्त किया था।

मां अन्नपूर्णा ने भोलेनाथ से कहा था कि जो भी उनकी शरण में आएगा उसे कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होगी। पुराणों में मां अन्नपूर्णा को माता पार्वती का स्वरूप बताया गया है। काशी में प्रतिवर्ष अगहन मास में देवी अन्नपूर्णा की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।

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