गुस्सा एक स्वाभाविक क्रिया है।लेकिन कई बार हमें न चाहते हुए भी गुस्सा कर बैठते हैं।जिससे ना सिर्फ हमारे बनते काम बिगड़ जाते हैं, बल्कि लोगों के बीच संबंध भी खराब हो जाते हैं।क्योकि गुस्से में लोग अक्सर कुछ करीबियों को बुरा-भला कहने से भी नहीं चूकते हैं।हालांकि, गुस्सा शांत होने के बाद उन्हें अपने किए पर पछतावा भी होने लगता है।
इसी लिए आचार्य चाणक्य ने कहा है कि हमें सोच-विचार करके ही बोलना चाहिए।आचार्य चाणक्य के मुताबिक, परिस्थिती के अनुसार ही खुद को ढाल लेना चाहिए।गुस्सा आने पर हमें कई बार समझ नहीं आता कि क्या करें, जिसकी वजह से दूसरों की भावनाएं आहत हो जाती हैं।ज्यादा गुस्सा आने की स्थिती में चाणक्य नीति आपके लिए बेहतरीन मार्गदर्शन साबित हो सकती है।आइये जाने


वाणी पर रखें कंट्रोल-जब इंसान गुस्से में हो तब उसे पता नहीं चलता या यूं कहें उसे अपने बोले गए जहरीले शब्द का तनिक भी एहसास नहीं होता कि वो क्या बोले जा रहा है, जब उसी व्यक्ति का गुस्सा शांत हो जाता है और वो अपने कहे गए शब्दों को याद करता है तो उसे पछतावा होने लगता है।इसलिए कहा जाता है कि हमेशा बोलते समय अपनी वाणी पर कंट्रोल रखना चाहिए।बोलते समय यह जरूर ध्यान रखा जाना चाहिए कि वे क्या बोल रहे हैं और इसका अंजाम क्या होगा।


सोच-समझकर बोलें-आर्चय चाणक्य कहते हैं कि किसी भी व्यक्ति को सोच समझकर बोलना चाहिए।कब, क्या और कैसे बोलना है इसकी समझ होना जरूरी है क्योंकि फिर बोले गए शब्द वापस नहीं लिए जा सकते हैं।चाणक्य के कहने का तात्पर्य है कि बोली की मदद से किसी के मन में अपने लिए सम्मान पैदा कराया जा सकता है।


तुरंत न दें प्रतिक्रिया-आचार्य चाणक्य का ये भी कहना है कि किसी भी बात पर तुरंत प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए।कोई भी अगर कुछ बोले, सबसे पहले हमें उसके बारे में सोचना चाहिए।तुरंत प्रतिक्रिया देने से हम कई बार उचित शब्दों का प्रयोग नहीं कर पाते हैं।जिससे सामने वाले पर गलत प्रभाव पड़ सकता है।

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