महाभारत महाकाव्य के मुताबिक, हस्तिनापुर नरेश पाण्डु को यह श्राप था कि वह जब भी अपनी पत्नियों कुंती या माद्री के साथ सहवास करेंगे, तुरंत ही मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे। इसलिए कुंती ने दुर्वासा ऋषि से मिले दिव्य मंत्र के बल पर अपने तीन पुत्रों युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन को जन्म दिया। जबकि विवाह पूर्व कुंती ने इसी मंत्र का प्रयोग कर कर्ण को जन्म दिया था। कुंती ने वही मंत्र विद्या माद्री को भी बताई, जिनसे दो पुत्र हुए नकुल और सहदेव।

नकुल पशुपालन शास्त्र और चिकित्सा में दक्ष थे, जबकि सहदेव अच्छे रथ योद्धा माने जाते ​थे। युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन के बारे में सभी जानते हैं कि वे कितने महारथी थे। महाभारत युद्ध में सहदेव के रथ में जुड़े घोड़े तीतर के रंग के थे। उनके रथ पर हंस का ध्वज लहराता था। सहदेव की पत्नियों में द्रौपदी, विजया, भानुमति और जरासंध की कन्या का नाम आता है। जबकि उनके नाम से तीन ग्रंथ मिलते हैं- व्याधिसंधविमर्दन, अग्निस्त्रोत, शकुन परीक्षा।

महाभारत कथा में यह वर्णन मिलता है कि सहदेव भविष्य में होने वाली हर घटना को पहले से ही जान लेते थे। सहदेव ने द्रोणाचार्य से ही धर्म, शास्त्र, चिक्तिसा के अलावा ज्योतिष विद्या सीखी थी। मतलब साफ है सहदेव त्रिकालदर्शी थे। कहते हैं कि महाभारत युद्ध से पहले दुर्योधन ने सहदेव से शुभ मुहूर्त पूछा था। यह जानते हुए कि दुर्योधन उनका शत्रु है, फिर भी सहदेव ने युद्ध शुरू करने का सही समय बता दिया।

कथा के मुताबिक, सहदेव के धर्मपिता पाण्डु बहुत ही ज्ञानी थे। राजा पाण्डु की यह अंतिम इच्छा थी कि उनके पांचों बेटे उनके मृत शरीर को खाएं ताकि उन्होंने जो ज्ञान अर्जित किया है वह उनके पुत्रों में चला जाए। पांडवों में से केवल सहदेव ने अपनी पिता की इच्छा का पालन किया। उन्होंने पाण्डु के मृत शरीर का पहला टुकड़ा खाया तो इतिहास का ज्ञान हुआ, दूसरा टुकड़ा खाने पर वर्तमान का तथा तीसरे टुकड़ा खाते ही वह भविष्य को देखने लगे।

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