अक्षय कुमार की फिल्म 'केसरी' के रिलीज होने से पहले ही पढ़ें उसकी पूरी कहानी....
आपको जानकारी को लिए बता दें कि अक्षय कुमार स्टारर मूवी केसरी इस साल होली के अवसर पर देशभर के सिनेमाघरों में रिलीज की जाएगी। दरअसल यह फिल्म इतिहास की सच्ची घटना पर आधारित है। इस फिल्म की पूरी कहानी सारागढ़ी की लड़ाई के इर्दगिर्द घूमती है, इस युद्ध में 21 भारतीय सैनिकों ने 10000 अफगानी सैनिकों से टक्कर ली थी। भारतीय इतिहास की कई ऐसी बातें हैं, जिन्हें कभी उजागर करने की जरूरत नहीं समझी गई, लेकिन शहीदों का बलिदान कभी छुपाए नहीं छुपता है।
यह कहानी 1897 की है, उन दिनों भारत अंग्रेजों का गुलाम हुआ करता था। यह बात हर हिंदुस्तानी अच्छी तरह से जानता है कि अपनी निजी लड़ाई लड़ने के लिए अंग्रेजी साम्राज्य एशिया के अलावा अन्य देशों में भी भारतीय सैनिकों का ही इस्तेमाल करता था। आधुनिक भारत के इतिहास में इस युद्ध को सारागढ़ी की लड़ाई के नाम से जाना जाता है, जिसमें महज 21 सिख सैनिकों ने सारागढ़ी किले को बचाने और अपने स्वाभिमान के खातिर 600 अफगानी सैनिकों को मार गिराया था।
लेकिन यह लड़ाई 21 सिख सैनिकों और 10 हजार अफगानी सैनिकों के बीच थी। इन 21 जवानों की शहादत के बाद ब्रिटिश पार्लियामेंट हाउस ऑफ़ कॉमंस ने इन्हें विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया था। ब्रिटेन में आज भी सरागढ़ी की जंग को शान से याद किया जाता है।सारागढ़ी (अब पाकिस्तान) हिंदुकुश पर्वत पर मौजूद एक छोटे से गांव का नाम है। अंग्रेजी शासनकाल में सारागढ़ी की चौकी पर 36 सिख रेजीमेंट तैनात थी। यह चौकी लॉकहार्ट और गुलिस्तान के किलों के बीच कम्यूनिकेशन नेटवर्क का काम करती थी।
बता दें कि 27 अगस्त से 11 सितंबर 1897 के बीच पश्तूनों ने सारागढ़ी के किले पर कब्जे के लिए कई हमले किए। लेकिन हर बार 36वीं सिख रेजिमेंट ने पूश्तनों के मंसूबों पर पानी फेर दिया। अंत में वो समय आया जब करीब 10 हजार पठानों ने 12 सितंबर 1897 को सारागढ़ी पर हमला किया। उस सुबह करीब 10 से 12 हजार अफगानी कबालिईयों ने सारागढ़ी को चारो तरफ से घेर लिया। हमले के शुरू होते ही सिग्नल इंचार्ज गुरुमुख सिंह ने लेफ्टिनेंट कर्नल जॉन हॉफ्टन को पूरा ब्यौरा दिया लेकिन किले तक तुरंत मदद पहुंचाना बहुत मुश्किल था। जब मदद की उम्मीद टूट गई तब 21 सिख सैनिकों ने उतनी बड़ी सेना से लड़ने का निर्णय लिया।
सिखों के हौसले से, दुश्मनों के कैम्प में हडकंप मच गया। उन्हें ऐसा लगा मानो कोई बड़ी सेना अभी भी किले के अन्दर है। हवलदार इशर सिंह ने नेतृत्व संभालते हुए अपनी टोली के साथ जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल का नारा लगाया और दुश्मनों पर झपट पड़े। लड़ते-लड़ते सुबह से रात हो गई अंत में सभी 21 सैनिक शहीद हो गए। लेकिन तब तक करीब 600 अफगानी मारे जा चुके थे। शायद अफगानी अपनी रणनीति से भटक चुके थे, इसलिए ब्रिटिश आर्मी से अगले दो दिन में ही
युद्ध हार गए।