इंटरनेट डेस्क। आरक्षण यानि कि रिजर्वेशन भारतीय कानून द्वारा लागू किया गया एक ऐसा नियम है जिसके अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों, संघ और राज्य नागरिक सेवाओं, संघ और राज्य सरकार के विभागों और सभी सार्वजनिक और निजी शैक्षणिक संस्थानों में सीटों का प्रतिशत आरक्षित होता है।

भारत की संसद में प्रतिनिधित्व के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण नीति भी बढ़ा दी गई है। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से वर्तमान में एससी और एसटी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण पर अपने फैसले को बरकरार किया हुआ है।

पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए आरक्षण को विंध्या के दक्षिण में रियासतों में स्वतंत्रता से पहले लागू किया गया था। महाराष्ट्र में कोल्हापुर के राजा छत्रपति साहजी महाराज ने गरीबी उन्मूलन और राज्य प्रशासन में उन्हें उचित हिस्सेदारी देने के लिए 1902 के आरंभ में पिछड़े वर्गों के पक्ष में आरक्षण शुरू किया था।

1902 के एक नोटिफिकेशन के अनुसार कोल्हापुर राज्य में पिछड़े वर्ग / समुदायों के लिए सेवाओं में 50% आरक्षण बनाया गया है। इस नोटिफिकेशन को भारत में एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण प्रदान करने वाला पहला सरकारी आदेश माना जाता है।

भारतीय न्यायपालिका तब से लेकर आरक्षण में निर्णय को बरकरार रखा हुआ है और कुछ मामलों में इसके कार्यान्वयन को अच्छी तरह से ट्यून करने का विकल्प चुना गया है। भारतीय संसद द्वारा संवैधानिक संशोधन के माध्यम से आरक्षण के संबंध में कई निर्णय संशोधित किए गए हैं। हालांकि भारतीय न्यायपालिका के कुछ निर्णयों को राज्य और केंद्र सरकारें आज भी नहीं मानती है।

एजुकेशन की क्वालिटी पर आरक्षण का प्रभाव-

फैकल्टी की कमी –

आरक्षण की वजह से फैकल्टी की एक बड़ी कमी देखी जा सकती है। हर साल छात्रों की संख्या में कॉलेजों में बढ़ोतरी हो रही है। टीचरों और छात्रों का अनुपात आज भी काफी संस्थानों में असंतुलित ही हैं। सरकार के मुताबिक सामान्य श्रेणी से संबंधित सीटों की कुल संख्या में वृद्धि होगी जो कि लागू होने में अभी बहुत दूर है तो फिर टीचरों की कमी कैसे पूरी की जा सकती है। ऐसे परिदृश्य में एजुकेशन की गुणवत्ता पर आरक्षण का एक बड़ा प्रभाव देखा जा सकता है।

अपर्याप्त बुनियादी ढांचा-

देश में उच्च तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए, सरकार कुछ और आईआईटी और आईआईएम खोलने जा रही है। मौजूदा आईआईटी और आईआईएम में पहले ही फैकल्टी की कमी चल रही है तो इससे पहले सरकार ने मौजूदा संस्थानों में प्रयोगशालाओं, खेल के मैदानों, कर्मचारियों, छात्रावासों और क्लासों की कमी से संबंधित समस्याओं का समाधान नहीं किया है तो नए संस्थान कैसे खोल सकती है।

मेरिट पर नकारात्मक प्रभाव-

किसी भी संस्थान की प्रतिष्ठा छात्रों द्वारा उत्पादित उत्कृष्ट परिणामों पर निर्भर करता है। आईआईटी या आईआईएम या आईआईएससी शिक्षा की गुणवत्ता और उत्कृष्ट परिणामों के लिए प्रसिद्ध हैं।

आरक्षण का विचार आज के युवा छात्रों को को कमजोर कर रहा है क्योंकि इससे उत्कृष्ट छात्रों का मनोबल कम हो गया है क्योंकि वे एडमिशन के दौरान योग्य होते हुए भी आरक्षण की वजह से एडमिशन नहीं ले पाते हैं। एक सामान्य अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति उम्मीदवार को सीट से सुनिश्चित किया जाता है जबकि एक अधिक योग्य छात्र वो ही सीट नहीं हासिल कर सकता है।

ब्रेन ड्रैन-

प्रत्येक देश की युवा आबादी देश को सफलता की नई ऊंचाई पर ले जाती है और इसे वापस करने के लिए, एक देश में सभी को सर्वश्रेष्ठ शिक्षा प्रदान करने की आवश्यकता होती है। ऐसा करने में विफल होने के परिणामस्वरूप और इसके परिणामस्वरूप जो फिनोमेना बनता है उसे ब्रेन ड्रेन के नाम से जाना जाता है जो कि न केवल उस देश के गौरव के लिए एक बड़ा नुकसान है बल्कि यह एक आर्थिक नुकसान भी है।

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