महाभारत में द्रोणाचार्य और अर्जुन की कहानी आपने सुनी होगी। जिसमे दक्षिणा के तौर पर अपने गुरु को अपना अंगूठा काट कर दे दिया था। ये गुरु शिष्य की ऐसी जोड़ी है जिन्हे आज भी दुनिया याद करती है।

लेकिन अब ऐसा नहीं है। आज के समय में कोई किसी का सागा नहीं है। खासकर जब बात आती है राजनीति की तो सत्ता पाने के लिये भाई-भाई, बाप-बेटे, चाचा-भतीजे तक में तकरार हो जाती है।

आज हम आपको कुछ ऐसे शिष्यों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने अपने गुरुओं से राजनीति सीखी लेकिन आज वही अपने गुरुओं को तेवर दिखा रहे हैं। दिल्ली के पूर्व जल मंत्री कपिल मिश्रा का, फिर दूसरा नाम आता है दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल का,तीसरा नाम है टीपू कहने जाने वाले यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव का। आइये जानते हैं इन सभी के बारे में।

कपिल मिश्रा- अरविंद केजरीवाल

दिल्ली के पूर्व जलमंत्री का नाम हमारी लिस्ट में पहली पोजीशन पर है। अन्ना हजारे की अगस्त क्रांति से अरविंद केजरीवाल और कपिल मिश्रा की दोस्ती हुई थी। अन्ना हजारे से दूर होने के बाद अरविंद केजरीवाल को कपिल मिश्रा का सहारा मिला।

जिन्होने अपने ही राजनीतिक गुरु अरविंद केजरीवाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी साथ ही उन्होंने यह भी कहा जा था कि अपने गुरु के रूप में जिनसे उन्होंने सब सीखा आज उन दोनों की राहें अलग अलग है।

अरविंद केजरीवाल-अन्ना हजारे

भारत में अगस्त क्रांति लाने वाल गांधीवादी अन्ना हजारे ने कई आंदोलन किए लेकिन वे राजनीति से हमेशा दूर ही रहे थे। उनके इस आंदोलन में सबसे आगे उनके शिष्य अरविंद केजरीवाल थे जो कि आज दिल्ली के सीएम है और राजनीति में उनकी अच्छी धाक है।

इसके बाद केजरीवाल और अन्ना हजारे के रास्ते अलग अलग हो गए।

मुलायम सिंह यादव- अखिलेश यादव

कहते हैं राजनीति में कोई किसी का शक नहीं होता है। ये बाप बेटे की जोड़ी भी हमारी लिस्ट में शामिल है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के कर्ताधर्ता मुलायम सिंह यादव और उनके पुत्र अखिलेश यादव के बीच साल 2017 में शीतयुद्ध चला। एक ओर मुलायम ने अखिलेश को यूपी के सीएम बनने के काबिल नहीं माना वहीं अखिलेश ने उन्हें पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की बात कह डाली। बाप बेटे के बीच का यह मतभेद जनता के सामने भी आया और 2017 में सपा की हार हुई।

नरेंद्र मोदी- लाल कृष्ण आडवाणी

बीजेपी के सबसे बुजुर्ग नेता लाल कृष्ण आडवाणी को कभी भी पीएम पद का दांवेदार घोषित नहीं किया गया। इसके अलावा उन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव में मंत्रीमंडल विस्तार में एक मार्गदर्शक के रूप में ही चुना गया था। जब बाबरी मस्जिद विध्वंस का मामला में सुप्रीम कोर्ट ने आडवाणी पर केस चलाने को कहा तो कई लोगों ने इसका जिम्मेदार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही बताया।

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